गिर के शेरों के सामने खड़ा हुआ संकट, जंगल में गिरे पेड़ों ने बढ़ाई मुसीबत
2021 में अरब सागर से पनपे जिस चक्रवाती तूफान तौकते ने गुजरात में भारी तबाही मचाई थी, उसने गिर के जंगलों में रहने वाले शेरों के सामने एक अजीब संकट खड़ा कर दिया है। जी हां संकट कुछ ऐसा है कि अगर समय रहते कोई कदम न उठाये गये तो शेरों का अस्तित्व भी मिट सकता है।
अब आपको बताते हैं कि आखिर एक साल पहले आया चक्रवाती तूफान तौकते अचानक फिर से क्यों चचाओं में है।
दरअसल मई 2021 में आये तौकते तूफान ने गुजरात में भारी तबाही मचाई थी। इस तूफान ने गिर के जंगलों में हजारों पेड़ गिरा डाले। हालात ऐसे थे कि पेड़ जड़ समेत उखड़कर धराशाही हो गये। गिर के जंगलों में गिरे इन पेड़ों ने अब यहां पाये जाने वाले शेरों के लिये संकट खड़ा कर दिया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक गिर राष्ट्रीय उद्यान में चक्रवात की वजह से 3.5 मिलियन से अधिक पेड़ उखड़ गये थे। चिंता की बात है कि ये पेड़ पिछले एक साल से जंगल में गिरे पड़े हैं। पेड़ जंगल में पड़े-पड़े सूख चुके हैं और ये पेड़ जंगल की आग में घी का काम कर सकते हैं। हालांकि शेर अकसर खुले मैदान को पसंद करते हैं। लेकिन उनका पूरा अस्तित्व उन जंगली जानवरों पर टिका है जो शाकाहारी होते हैं, पेड़ों के गिरने से इन जानवरों की आवाजाही में भी दिक्कत आ रही है। जंगल में इतने बड़े पैमाने पर पेड़ गिरने से शेरों को शिकार करने में भी परेशानी हो रही है। यही कारण है कि गिर राष्ट्रीय उद्यान के शेर जंगल से बाहर का रूख करने लगे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि गिर के जंगलों में गिरे सभी पेड़ हटाने की आवश्कता नहीं लेकिन कमसेकम 40 फीसदी पेड़ तो हटाये ही जाने चाहिए। आपको बता दें कि 2019 की जनगणना के अनुसार, गुजरात के 674 एशियाई शेरों में से लगभग आधे यानी 325 से 350 शेर 1,412 वर्ग किलोमीटर में फैले इसी अभयारण्य में रहते हैं। इधर इस नये संकट से निपटने के लिये वन विभाग ने कमर कस ली है। जूनागढ़ वन विभाग ने जंगली जानवरों की निर्बाध आवाजाही सुनिश्चित करने और जंगल को आग से बचने के लिए गिरे हुए पेड़ों को हटाने की कवायद शुरू कर दी है।