सुस्त सिस्टम और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा मालन पुल, स्पीकर ऋतु खंडूरी ने आपदा सचिव की ली क्लास
जब सिस्टम को भ्रष्टाचार दीमक की तरह चाट जाए तो सरकारी निर्माण कार्यों की बुनियाद को मजबूत मान लेना बेइमानी है। क्योंकि ऐसे निर्माणों की जड़ें खोखली हो जाया करती हैं, ठीक इस पुल की तरह। जी हां ये कोटद्वार का वही मालन पुल है। जो बीते दिन अचानक धराशायी हो गया था। पुल के गिरते ही ये बात साफ हो गई थी कि ये पुल दरअसल नदी के उफान से नहीं बल्कि सिस्टम की काहिली के चलते धड़ाम हुआ है। आपदा नहीं इस पुल को भ्रष्टाचार ले डूबा है।
यकीन नहीं होता तो जरा विधानसभा अध्यक्ष िऋतु खंडूरी को सुनिए, जो पुल के गिरने के बाद निरीक्षण के लिये पहुंची थीं। तब तक को सभी को यही लग रहा था कि भारी बारिश है पानी का वेग है पुल इस उफान को भला कहां सहन कर पाता, यानी आपदा में पुल गिर गया। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने आकर सब कुछ पलट दिया उन्होंने साफ कह दिया कि वो इस पुल की मरम्मत के लिये एक साल से माथा खपा रहीं थीं मगर मजाल है कोई अधिकारी सुन ले और बुनियाद कमजोर इसलिये हुई थी क्योंकि पुल के नीचे खनन माफिया धड़ल्ले से अवैध खनन कर रेता, बजरी चट कर गये थे।
फोन पर विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी अपना दुखड़ा नहीं रो रही हैं वो जंक खाये सिस्टम और उसके नाकारा अधिकारियों की पोल खोल रही हैं। फोन पर दूसरी और जो सज्जन हैं वो उत्तराखंड के आपदा सचिव डा. रंजीत कुमार सिन्हा हैं, जिनके कंधों पर केवल इस बात का एक मात्र बोझ है कि वो आपदा से जुडे़ निर्माण, पुनर्निर्माण और प्री मानसून-पोस्ट मानसून की व्यवस्थाओं को चाक चौंबंद रखें मगर यहां साहब की चुप्पी एक पुल को लील गई।
सवाल बड़ा यही है कि जब सूबे के अधिकारी सत्ताधारी दल के विधायक, वो भी महिला विधायक, उपर से विधानसभा अध्यक्ष की बात नहीं सुनते तो भला आपकी और हमारी कौन सुनने वाला है। अभी मानसून का सीजन बहुत लंबा है दुआ कीजिए कि अधिकारियों की काहिली, लापरवाही का खामियाजा कम से कम भुगतना पड़े।