चैत्र नवरात्रि का पहला दिन आज, माँ शैलपुत्री की हो रही है पूजा, जानिये क्या है पूजन विधि और कथा
साक्षी सजवाण, देहरादून
सनातन धर्म में नवरात्रि का पर्व बहुत विशेष माना गया है। पूरे भारत में इस पर्व को श्रद्धा और हर्षाेल्लास के साथ मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि की शुरूआत आज से हो गई है। नरवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। माँ देवी के स्वरूपों में शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। वहीं नवरात्रि का पहला दिन माता शैलपुत्री को समर्पित है और उनकी पूजा अर्चना कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है।
पूजन विधि और सामाग्री : नवरात्रि के पहले दिन नहा धोकर मंदिर को ताजे फूलों से सजाना शुभ माना जाता है। इसके बाद मान्यतानुसार पूजा शुरू की जाती है। कहा जाता है कि लाल रंग बुराई पर अच्छाई का प्रतीक होता है। यह रंग मां शैलपुत्री का भी प्रिय माना गया है। माता को एक चुनरी, कलावा, चौकी, कलश, कुमकुम, पान, सुपारी, कपूर, जौ, नारियल, केले का फल, देसी घी, धूप, दीपक, अगरबत्ती, मिट्टी का बर्तन, माता का श्रृंगार का सामान, फूलों की माला अर्पित की जाती है इसके बाद एक कटोरी गंगाजल के साथ दुर्गा स्तुति या दुर्गा पाठ किया जाता है।
पौराणिक कथा : शैलपुत्री को हिमालय की बेटी भी कहा जाता है, और वह माता सती का अवतार मानी जाती हैं। इसके पीछे की पौराणिक कथा भी है। एक बार माता सती के पिता प्रजापति दक्ष ने एक महायज्ञ करने का निर्णय लिया जिसमें उन्होंने सभी को आमंत्रण दिया था लेकिन माता सती और उनके पति भगवान शिव को आमंत्रण नहीं भेजा। लेकिन माता सती ने शिव के मना करने के बाद भी यज्ञ में शामिल होने का निर्णय लिया। यज्ञ पूजन में पहुंचते ही माता सती को अपमान महसूस हुआ। केवल माता सती की माँ ने उन्हें गले से लगाया लेकिन उनकी बहने उनका और शिव का उपहास उड़ा रही थीं। माता सती इस प्रकार का अपमान सहन नहीं कर पाईं और अग्नि में कूद गईं। और अपने प्राण त्याग दिए। भगवान शिव को जब इस बात का ज्ञांत हुआ तो वह भी क्रोधित हो गये और पूरे यज्ञ को ध्वस्त कर दिया। जिसके बाद माता सती ने हिमालय के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया। जहां उनका नाम शैलपुत्री पड़ा।