राष्ट्रपति की मुहर के बिना उत्तराखण्ड में लागू नहीं हो सकती समान नागरिक संहिता, जानिये क्या है प्रक्रिया
देहरादून- उत्तराखण्ड की धामी सरकार ने अपने चुनावी वादे के तहत राज्य में समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की कवायद शुरू कर दी है। इसके लिये राज्य कैबिनेट की पहली बैठक में यूनिफॉर्म सिविल कोड के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है और कैबिनेट ने कानून का प्रारूप तैयार करने के लिये एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन कर दिया है। ऐसे में ये जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि आखिर समान नागरिक संहिता को लागू करना इतना आसान होगा? क्या कोई राज्य केन्द्र सरकार के बिना नागरिक संहिता जैसा कानून बनाकर लागू कर सकता? यह बताएंगे पहले जानिये यूनिफॉर्म सिविल कोड है क्या- समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड सभी धर्मों के लिए एक ही कानून है। अभी तक हर धर्म का अपना अलग कानून है, जिसके हिसाब से व्यक्तिगत मामले जैसे शादी, तलाक आदि पर निर्णय होते हैं। हिंदू धर्म के लिए अलग, मुस्लिमों का अलग और ईसाई समुदाय का अलग कानून है। समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद सभी नागरिकों के लिए एक ही कानून होगा। वर्तमान समय में हर धर्म के लोगों से जुड़े मामलों को पर्सनल लॉ के माध्यम से सुलझाया जाता है। हालांकि पर्सनल लॉ मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का है जबकि जैन, बौद्ध, सिख और हिंदू, हिंदू सिविल लॉ के तहत आते हैं। अब आपको बताते हैं कि क्या उत्तराखण्ड सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू कर सकती है। कानूनविदों की मानें तो राज्य ऐसा कर सकता है। अनुच्छेद-44 के तहत राज्य सरकार अपने राज्य के नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता बना सकती है लेकिन इसे लागू कराने के लिए केंद्र को भेजना होगा। इसके बाद राष्ट्रपति से मुहर लगने पर ही यह लागू हो सकती है। अगर केंद्र सरकार कोई यूनिफॉर्म सिविल कोड लेकर आती है तो राज्य की संहिता उसमें समाहित हो जाएगी। इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी 2019 में कहा था कि देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश नहीं की गई है यानी न्यायपालिका भी इसके पक्ष में है। ऐसे में अब देखना है कि क्या उत्तराखण्ड यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू कर इतिहास रचेगा या फिर इसका महज राजनीतिकरण भर होगा।