जस्टिस बीवी नागरत्ना बन सकती हैं भारत की पहली महिला प्रधान न्यायाधीश, जानिए कौन है जस्टिस बीवी नागरत्ना
आकांक्षा थापा
कल सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली 9 जजों ने एक साथ शपथ ली, इससे पहले कभी भी इतने सारे जजों ने सुप्रीम कोर्ट में एक साथ शपथ नहीं ली है… शपथ लेने वाले 9 जजों में से तीन महिला न्यायाधीश हैं। वहीँ भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने इन सभी को शपथ दिलाई।
वहीँ , कर्नाटक हाई कोर्ट की मौजूदा जज जस्टिस बीवी नागरत्ना 2027 में भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस यानि सीजेआई बन सकती हैं। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने जिन तीन महिला जजों के नामों को मंजूरी दे दी है,उनमें जस्टिस बीवी नागरत्ना का नाम भी शामिल हैं..
इन जजों में जस्टिस नागरत्ना के अलावा तेलंगाना हाई कोर्ट की जज जस्टिस हिमा कोहली और गुजरात हाई कोर्ट की जज जस्टिस बेला त्रिवेदी का नाम महिला जजों के तौर पर शामिल है। आपको बता दें जस्टिस बीवी नागरत्ना अभी कर्नाटक हाई कोर्ट की जज हैं। वकील के तौर पर 28 अक्टूबर, 1987 को इनका बेंगलुरु में रजिस्ट्रेशन हुआ। इन्होंने बेंगलुरु में ही वकालत शुरू की और कॉन्स्टीट्यूशनल लॉ, कॉमर्शियल लॉ, इंश्योरेंस लॉ जैसे विषयों में इनकी काफी पकड़ रही। 18 फरवरी, 2008 को यह कर्नाटक हाई कोर्ट में बतौर एडिश्नल जज नियुक्त हुईं और फिर दो साल बाद 2010 में परमानेंट जज बन गईं। अगर केंद्र सरकार ने मंजूरी दे दी तो जस्टिस नागरत्ना 2027 में देश की पहली महिला मुख्य न्यायधीश बन सकती हैं। हालांकि, उनका यह कार्यकाल एक महीने से थोड़ा ज्यादा का होगा।
जहां जस्टिस नागरत्ना 2027 में भारत की मुख्य न्यायधीश बन सकती हैं, वही उनके पिता, ईएस वेंकटरमैया देश के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रहे हैं।
साल 1989 में करीब 6 महीने तक सीजेआई रहे।
अपने कार्यकाल में यह बड़े फैसले लिए
2012 में जस्टिस नागरत्ना ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को रेगुलेट करने को लेकर एक फैसला दिया। उन्होंने अपने फैसले में लिखा, ‘हालांकि, सूचना का सच्चा प्रसारण किसी भी ब्रॉडकास्टिंग चैनल की अनिवार्य आवश्यकता है, ‘ब्रेकिंग न्यूज’, ‘फ्लैश न्यूज’ या किसी अन्य रूप में सनसनी पर निश्चित रूप से अंकुश लगाया जाना चाहिए।’ उन्होंने केंद्र सरकार से ब्रॉडकास्ट मीडिया को रेगुलेट करने के लिए स्वायत्त और वैधानिक तंत्र गठित करने पर विचार करने को कहा, लेकिन साथ ही स्पष्ट कर दिया है कि रेगुलेशन का मतलब यह नहीं है कि उन्हें सरकार या किसी अन्य सत्ता की ओर से नियंत्रित करना समझा जाए।
इसके बाद साल 2019 में उन्होंने मंदिर को लेकर भी एक महत्वपूर्ण फैसला दिया था। उन्होंने व्यवस्था दी कि मंदिर एक ‘व्यावसायिक प्रतिष्ठान’ नहीं है, इसलिए कर्नाटक में मंदिर के कर्मचारी पेमेंट्स ऑफ ग्रेच्युटी ऐक्ट के तहत ग्रेच्युटी के हकदार नहीं हैं। उन्होंने फैसले में कहा कि मंदिर के कर्मचारी ‘कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ विन्यास अधिनियम’ के तहत ग्रेच्युटी के अधिकारी होंगे, जो कि राज्य में स्पेशल कानून बनाया गया है, न कि पेमेंट्स ऑफ ग्रेच्युटी ऐक्ट के अनुसार उसे पाने के अधिकारी हैं।