Sunday, April 28, 2024
उत्तराखंडकांग्रेस

दलबदल कानून से बचना है तो 10 नहीं 12 विधायक चाहिए, स्पीकर की भूमिका होगी अहम

देहरादून- उत्तराखण्ड के सियासी हलकों में इस वक्त चर्चा है कि संगठन में हुये बदलाव के बाद 10 विधायक कांग्रेस छोड़ सकते हैं। बताया जा रहा है कि कांग्रेस आलाकमान से नाराज चल रहे विधायक गोपनीय बैठक की तैयारी कर रहे हैं और जल्द ही पार्टी छोड़ने का निर्णय लिया जा सकता है। अगर ऐसा होता है यानी कांग्रेस के 10 विधायक पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देते हैं तो फिर आगे क्या होगा? क्या इन विधायकों की विधानसभा सदस्यता बची रहेगी? अगर इन विधायकों ने भाजपा का दामन थामा तो सदन के भीतर क्या स्थिति रहेगी? अगर किसी दूसरे दल में शामिल हुये या खुद की पार्टी बनाई तब क्या होगा?

ये तमाम सवाल हैं जिनका उत्तर हर कोई जानना चाहेगा। उत्तराखण्ड विधानसभा निरर्हता नियमावली 2005 की बात करें तो किसी भी दल का निर्वाचित विधायक यदि पार्टी छोड़ता है तो संबंधित पार्टी विधानसभा में एक याचिका दायर कर उस विधायक की सदस्यता को रद्द करने की मांग कर सकती है। जिस पर विधासभा अध्यक्ष द्वारा फैसला लेते हुये उस विधायक सदस्यता रद्द की जा सकती है। अगर एक से अधिक विधायक भी पार्टी छोड़ते हैं तो भी सदस्यता जा सकती है। क्योंकि ऐसे विधायकों के खिलाफ दलबदल कानून के तहत त्वरित कार्यवाई की जा सकती है। लेकिन विधानसभा की निरर्हता नियमावली में प्रावधान है कि अगर पार्टी छोड़ने वाले विधायकों की संख्या उस दल के कुल निर्वाचित विधायकों की 2/3 है तब दलबदल कानून प्रभावी नहीं होगा। अब मौजूदा कांग्रेस के विधायकों की पार्टी छोड़ने की चर्चा पर लौटते हैं। कांग्रेस के सदन में 19 विधायक हैं। इसमें से अगर 10 विधायक पार्टी छोड़ते हैं तो उनकी सदस्यता जानी लगभग तय है। क्योंकि 2/3 के तहत पार्टी छोड़ने वाले विधायकों की संख्या कमसेकम 12 होनी चाहिए। 10 विधायकों के पार्टी छोड़ते ही कांग्रेस की ओर से स्पीकर को याचिका सौंप इनकी सदस्यता रद्द करने की मांग की जाएगी। ऐसे में स्पीकर की ओर से इन विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी जाएगी। अब मान लिया जाए कि कांग्रेस के 10 विधायक भाजपा का दामन थामते हैं तो क्या होगा? ऐसी स्थिति में भाजपा के हाथ में इन विधायकों को बचाने रास्ते मौजूद रहेंगे। मसलन विधानसभा के भीतर स्पीकर को अधिकार है कि वह संबंधित विधायकों की सदस्यता तत्काल रद्द करे या फिर उन्हें बरकरार रखे। ऐसे में मामला न्यायालय तक भी पहुंचेगा जोकि एक लम्बी प्रक्रिया होगी। उत्तर प्रदेश विधानसभा में पूर्व में ऐसा उदाहरण रहा है जब बसपा छोड़ने वाले कुछ विधायकों को स्पीकर लम्बे समय तक बचा ले गये और विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने से कुछ समय पहले ही उनकी सदस्यता रद्द की गई।

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