जब फेल हुआ विज्ञान तो देवदूत बनकर पहुंचे रैट माइनर्स, सिलक्यारा रेस्क्यू के हीरो
सिलक्यारा टनल में 17 दिनों तक फंसे सभी 41 मजदूर सकुशल बाहर निकल आये हैं, सभी स्वस्थ्य हैं और जल्द ही इन्हें अस्पताल में छुट्टी मिल रही है। सरकार ने सभी मजदूरों के हौसले को सलाम करते हुये उन्हें 1-1 लाख रूपये देने की घोषणा की है। मजदूरों के सकुशल बाहर लौटने पर पूरे देश ने राहत की सांस ली है। यू तो सिलक्यारा रेस्क्यू में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, रेलवे, परिवहन मंत्रालय, टनल एक्सपर्ट समेत तमाम अधिकारी-कर्मचारियों ने पूरी ताकत लगा दी मगर इस रेस्क्यू के असल हीरो बने वो छह सामान्य ध्याड़ी मजदूर जिन्हें आज पूरा देश सलाम कर रहा है। जी हां रैट माइनर्स। जब सिलक्यारा टनल में ऑगर मशीन ध्वस्त हो गई, उस aवक्त न वर्टिकल ड्रिलिंग शुरू हुई थी और न कोई दूसरा विकल्प नजर आ रहा था। एक पल के लिये तो लगा कि कहीं हम मजदूरों तक पहुंचने में देर न कर दें। ऐसे वक्त में देवदूत बनकर आये ये छह रैट माइनर्स। जिन्होंने एक सकरे पाइप में 40 मीटर भीतर जागर हाथों से पहाड़ काटना शुरू किया। अपने नाम और काम के अनुरूप इन रैट माइनर्स ने वाकई में पहाड़ को चूहों की तरह कुतर डाला और महज 12 घंटे के भीतर मजदूरों तक पहुंच गये। रैट माइनर्स की टीम में राकेश राजपूत, बाबू डामोर, भूपेन्द्र राजपूत, जैताराम, प्रसादी लोदी और सूर्य कुमार शामिल थे। आज इन रैट माइनर्स के जम्बे और हुनर को हर कोई सलाम कर रहा है।