Wednesday, December 4, 2024
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आखिर क्यों सेलाकुई इंडस्ट्रियल एरिया में नहीं खुल रहे मज़दूरों के लिए दरवाज़े ?

उत्तराखंड से ब्यूरो रिपोर्ट – 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब अपने राष्ट्र के नाम सम्बोधन में कहा कि सरकार को सबसे ज्यादा फ़िक्र मज़दूरों और छोटे कामगारों की है तो लगा कि पलायन कर अपने घरों को लौटने वाले इस बड़े और लाचार तबके को संजीवनी मिल जाएगी। बीते दिनों उत्तर प्रदेश , उत्तराखंड ,बिहार , राजस्थान मध्य प्रदेश में तो जैसे अप्रवासी मज़दूरों के घर वापसी की बाढ़ सी आ गयी थी। देश और दुनिया ने भी देखी थी वो तस्वीरें जब सड़कों और रेलवे ट्रैक पर लम्बी कतारों में मज़दूरों का परिवार अपने घरों की और चल पड़ा था। इसके बाद केंद्र और तमाम राज्य सरकारों की जैसे नींद टूटी और आनन फानन में कई योजनाओं की घोषणा करते हुए बसें और श्रमिक स्पेशल ट्रेन भी चलायी गयी। लेकिन अब जब 8 जून को देश खुलने लगा है और कोरोना संकट के बीच नए दौर और हालात नए कलेवर में नज़र आने लगे हैं .. ऐसे में अनलॉक इंडिया के पहले दिन जय भीम टीवी ने ताज़ा हालात का जायज़ा लेने के लिए उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से बीस किलोमीटर दूर बने सबसे बड़े इंडस्ट्रियल एरिया सेलाकुई का दौरा किया।
दरअसल यहाँ जाने का हमारा मकसद ही यही था की हम जान सकें की क्या सच में मज़दूरों को उन सभी सहूलियतो और योजनाओं का फायदा मिल रहा है जिसका दावा सरकारें कर रही है ? और क्या रोजगार के मामले में अब इन मज़दूरों को कोई उम्मीद उत्तराखंड में दिखाई दे रही है ? लेकिन आप को जानकार हैरानी होगी कि बीते दो महीने में सेलाकुई की ज्यादातर फैक्ट्रियों ने अपना दरवाजा इन मेहनतकश मज़दूरों के लिए बंद कर रखा है और रोजाना सैकड़ों की तादात में महिला , युवा और बुजुर्ग मज़दूर यहाँ एक अदद नौकरी के लिए सुबह से शाम तक भटक रहे हैं लेकिन उनके हाँथ निराशा ही लगती है। ज्यादातर मज़दूर या तो उत्तर प्रदेश से हैं या बिहार के और इनके परिवार की रोजीरोटी सेलाकुई की इन्हीं फैक्ट्रियों की बदौलत चल रही थी लेकिन आज इन मज़दूरों के पास न खाने को पैसा है और न वापस अपने घर जाने तक का कोई इंतज़ाम है।
जब हमने महिला मज़दूरों से उनके इन हालात पर बात की तो उनका  दावा था कि उनको कोरोना संकट की मार में जो बदइंतज़ामी झेली है वो बयां नहीं किया जा सकता है क्यूंकि इन गरीब लोगों को सरकारी राशन का एक दाना तक लौक डाउन के दौरान नहीं मिला है। हांलाकि बात करते करते इन बेबस मज़दूरों की आँखे भी भर आयी और भारी मन से इन मज़दूरों का ये आरोप था कि जो असल ज़रूरतमंद है उनको सरकार की किसी राहत योजना का कोई फायदा नहीं मिलता है और जो जुगाड़ तंत्र में माहिर हैं वो उनका हक़ मार रहे हैं। आपको बता दें की उत्तराखंड की राजधानी  देहरादून से लगभग बीस किलोमीटर दूर सेलाकुई में छोटी बड़ी मिलाकर सैकड़ों फैक्ट्रियां हैं जहाँ बड़ी संख्या में मजदूरों की डिमांड रहती थी लेकिन कोरोना महामारी के दौरान जब लॉक डाउन लगाया गया तो इन मज़दूरों की नौकरी जाती रही और आज जब देश फिर एक बार नए सिरे से खुल गया है तब भी इन मज़दूरों के सामने रोजगार का बड़ा संकट खड़ा है। सरकार केंद्र की हो या राज्य की भले ही दावे लाख किये जा रहे हों लेकिन अगर आपको सरकारी दावों और योजनाओं की हकीकत जाननी है तो एक बार सेलाकुई के फैक्ट्रियों के बाहर भटकते इन मज़दूरों से उनका दर्द ज़रूर सुनियेगा। 

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