हिमालय दिवस विशेष – आओ मिलकर अपना हिमालय बचाएँ
खड़ा हिमालय बता रहा है तुम डरो न आंधी पानी से
खड़े रहो तुम अविचल होकर सब संकट तूफानी में
आज हिमालय दिवस है ….. कोई पर्वतराज की शान में भाषण दे रहा है तो कोई नीतियों के विरोध प्रदर्शन की मुठियाँ ताने खड़ा है लेकिन हिमालय है जो खामोश खड़ा है और बदलते समय के साथ परिवर्तन की तस्वीरें देख रहा है।
भारत का मस्तक माना जाता है हिमालय को …. हिन्दुस्तान में हिमालय देश के करीब 65 फ़ीसदी हिस्से को पानी उपलब्ध कराता है। गंगा-यमुना की जलधारा यहीं से निकलती हैं। जड़ी बूटियों और अनेक दिव्य औषधियों से लकदक हिमालय कुदरत का अनमोल खजाना मनुष्य को देता है …. हवा, पानी और मिट्टी की अनमोल सम्पदा देने वाले इस उदार हिमालय को लाख दावों के बावजूद आज हम इंसान इस हिमालय को बचाने और उसके संरक्षण के लिए सिफर दावे वादे और घोषणाएं ही करते रहे हैं। सरकार कोई भी रही हो लेकिन अफ़सोस कि दुनिया में भारत का मान बढ़ाने वाले सजग प्रहरी हिमालय के लिए कोई ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाए जा सके हैं। ये अलग बात है कि बीते एक दशक में उत्तराखंड सहित दूसरे हिमालयी राज्यों ने कोशिशों में गंभीरता ज़रूर दिखाई है। लेकिन उसके आगे का क्या हाल है ये जगज़ाहिर है आज ऐसे में एक बार फिर हम और आप हिमालय दिवस की बात कर रहे हैं। लेकिन क्या कुर्सियों पर बैठे नियम निर्माता अपनी योजनाओं को अमलीजामा पहना पा रहे हैं ये बड़ा यक्ष सवाल है जिसका जवाब खोजना होगा।
भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 16.3 प्रतिशत हिस्से में जम्मू-कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर राज्यों तक फैला है हिमालय। बदली परिस्थितियों में यह हिमालयी क्षेत्र एक नहीं अनेक झंझावातों से जूझ रहा है। हिमालयी क्षेत्र में निरंतर आ रही आपदाएं डराने लगी हैं और हिमालयी राज्य उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है। जून 2013 में केदारनाथ त्रासदी में जन-धन की भारी हानि से हर कोई वाकिफ है। इसके अलावा हिमालयी क्षेत्रों में बादल फटना, भूस्खलन, हिमस्खलन, नदियों का बढ़ता वेग जैसी आपदाएं उत्तराखंड पर निरंतर ही टूट रही हैं।
अन्य हिमालयी राज्यों की तस्वीर भी इससे अलग नहीं है।यही नहीं, ग्लेशियरों का निरंतर पिघलना, स्नो और ट्री लाइनों का ऊपर की तरफ खिसकना भी हिमालयी क्षेत्र के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता। हिमालय की बिगड़ती सेहत के कारणों की तह में जाएं तो इसके पीछे उसकी अनदेखी सबसे बड़ी वजह है। असल में बेहद संवेदनशील वातावरण वाले हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरण और विकास के मध्य सामंजस्य का अभाव साफ देखा जा सकता है।पहाड़ों और सीमाओं पर खाली होते गाँव इस हिमालयी राज्य की असल तस्वीर बयान कर रही है ऐसे में अगर हिमालयी क्षेत्र में जल-जंगल-जमीन का ठीक से संरक्षण-संवर्धन हो जाए तो काफी दिक्कतें दूर हो जाएंगी।