Saturday, July 27, 2024
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आज तक के क्राइम रिपोर्टर रहे वरिष्ठ पत्रकार सलीम सैफी का खुलासा – साजिशन दिल्ली की मीडिया गैंग ने खत्म किया कैरियर , 29 साल का सफर हुआ पूरा 


  • मीडिया जगत में भी है नेपोटिस्म 

  •  मीडिया में भी हावी है गैंग बाज़ी  

  • प्रतिभाशाली पत्रकारों को बगैर सिफारिश नहीं मिलती नौकरी

  • छोटे शहर के पत्रकार को दिल्ली नोएडा में वजूद बनाना है चुनौती

  • दिल्ली की मीडिया गैंग ने  किया कैरियर बर्बाद 

  • कहा – कोई और होता तो आत्महत्या भी कर सकता था ……

ये वो कुछ संगीन आरोप है जो आज नेशनल टीवी मीडिया पर लगा रहे हैं सीनियर जर्नलिस्ट मोहम्मद सलीम सैफ़ी …..  टीवी पत्रकारिता में एक स्थापित चेहरा माने जाने वाले मोहम्मद सलीम सैफ़ी ने आज अपनी पत्रकारिता कैरियर के 29 साल का सफर कामयाबी के साथ पूरा कर लिया है। लगभग तीन दशक के इस सफर में इन्होने दिल्ली से लेकर पश्चिमी यूपी और उत्तर प्रदेश से लेकर हरियाणा , राजस्थान के क्षेत्रों में एक सफल टीवी पत्रकार के रूप में मीडिया के बनते बिगड़ते चेहरे को करीब से देखा और समझा है। 

टीआरपी के मास्टर पत्रकार माने जाने वाले सलीम सैफ़ी ने अपने कैरियर में जिन मशहूर पत्रकारों के साथ काम किया उनमें सीनियर जर्नलिस्ट राजीव शुक्ला , अजीत अंजुम , उदय शंकर क़मर वहीद नक़वी , इंडिआज़ मोस्ट वॉन्टेड फेम सुहैब इलियासी , सीनियर जर्नलिस्ट सुप्रिय प्रसाद,रजनीश आहूजा,जे.पी.दीवान,आशुतोष,राणा यशवंत,तौक़ीर अहमद शेरवानी(इंडियाज़ मोस्ट वान्टेड के स्क्रिप्ट राइटर) और शम्स ताहिर खान जैसे दिग्गजों का नाम शुमार है लेकिन शब्दो की जादूगरी की बारीकियों को शम्स ताहिर खान और तौक़ीर अहमद शेरवानी के सानिध्य में रहते हुए इन्होंने बखूबी सीखा, मीडिया का एक सच ये भी है कि यहां कोई सिखाता नही खुद सीखना पड़ता है,अजीत अंजुम बहुत ही ज़्यादा कड़वे और शक्की शख्श है लेकिन गज़ब के पत्रकार और कलम योद्धा भी है उन्ही के कहे अल्फ़ाज़ आज भी याद आते हैं उन्होंने कहा था “हमेशा अलर्ट रहो और खबर से कोई समझौता नही,ख़बर मतलब ख़बर,नो ब्लैकमेलिंग ” इसीलिए सलीम सैफ़ी के कैरियर का मूलमंत्र भी यही बन गया ख़बर मतलब ख़बर.. नो ब्लैकमेलिंग

मीडिया जगत के इन सितारों के साथ सीनियर टीवी पत्रकार रहे राजीव शुक्ला , सीनियर पत्रकार उदय शंकर जैसे दिग्गजों का नाम भी कैरियर को नई दिशा देने वालों में शुमार है। 

छात्र नेता सलीम सैफी ने LIC की प्रेस मीट से किया पत्रकारिता का आगाज़ – 

एक अनौपचारिक मुलाकात में अपने पत्रकारिता के लम्बे सफरनामे पर बात करते हुए सीनियर जर्नलिस्ट सलीम सैफ़ी बताते हैं कि जब उन्होंने 1990 में बारहवीं की पढ़ाई पूरी कर मेरठ कॉलेज में बी कॉम में दाखिला लिया तो खुद उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि एक दिन उनका नाम टीवी पत्रकारिता में इस तरह से मशहूर हो जायेगा।  छात्र राजनीति करने के मकसद से इन्होने स्टूडेंट्स यूनियन  छात्र जनता दल को ज्वाइन किया ….उसके बाद कुछ वक्त NSUI और ABVP के साथ भी गुज़ारा।

लेकिन एक छात्र आंदोलन के दौरान हुए अनुभव के बाद सैफ़ी जी ने स्थानीय नेता बाबर खान को  अपनी उस मंज़िल का पता बताया और सिफारिश करने को कहा … जिसपर चलकर सलीम सैफ़ी  भविष्य में एक बड़ा मुकाम  हासिल करना चाहते थे …. और वो था पत्रकारिता में अपनी किस्मत आज़माना …. ये वो दौर था जब मेरठ की पत्रकार बिरादरी में महावीर जैन,घनश्याम दास,नीरज कांत राही , दिनेश दिनकर,विशेश्वर कुमार,पुष्पेंद्र शर्मा, राज कुमार गर्ग,एस.राजू उर्फ राजेश शर्मा,यशपाल सिंह,ओमकार सिंह,संजय श्रीवास्तव, हरि जोशी,दिनेश गोयल,रवि विश्नोई और राजेंद्र त्रिपाठी जैसे पत्रकारों का काफी रौब और ज़लज़ला था …  ऐसे में उन्होंने मेरठ कॉलेज छात्र संघ के दमदार पूर्व अध्यक्ष और हमारा युग के मालिक व संपादक महावीर जैन तक पहुँचने की पहली बार अपने खैर ख़्वाहों,जनता दल नेता बाबर खान से सिफारिश लगवाई और पहुँच गए उनसे मिलने …. सब कुछ मन मुताबिक़ हुआ और 11 सितम्बर 1991 का वो दिन भी आ गया जब पत्रकारिता की शुरुआत हुई और पहली ख़बर लिखी,छात्र जनता दल के 18 वर्षीय युवा छात्र नेता सलीम सैफ़ी की पत्रकार के रूप में एक नए सफर की इस तरह शुरुआत हुई … सैफ़ी जी एक दिलचस्प वाक्या बताते हैं, जब पहली बार उन्हें खबर असाइनमेंट मिला LIC की प्रेस मीट कवर करने का …. आँखों में चमक लिए वो बताते हैं कि उस दिन जब दबे सकुचाये नए रोल में वो पीसी रूम में दाखिल हुए तो यहाँ पहली बार उनकी हौसला आफज़ाई  दैनिक जागरण के पत्रकार घनश्याम दास जी ने की जिन्होंने एक पत्रकार के रूप में  उनको अपनी बगल की कुर्सी पर बिठा कर स्वागत किया था।  

बड़े मौके की तलाश हुयी पूरी , राष्ट्रीय सहारा में मचाया ख़बरों की धूम – 

 कहते हैं न प्रतिभा को एक मौके की ज़रूरत होती है और कामयाबी खुद ब खुद तकदीर का फैसला लिख देती है। कुछ ऐसा ही हुआ मोहम्मद सलीम सैफी के साथ …..   अचानक एक दिन अमर उजाला के वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार गर्ग का फ़ोन सलीम सैफ़ी को आता है और वो बताते है कि सलीम सैफी को राष्ट्रीय सहारा से ऑफर दिया जा रहा है।1992 – 93 की ये वो घटना थी जो  युवा पत्रकार सलीम सैफ़ी को कामयाबी के अगले पायदान पर पहुँचाने वाली थी। उस वक्त सहारा के हेड हुआ करते थे के. एन.पांडेय जिनके साथ राधा रमन और आशीष राज कुलश्रेष्ठ जैसे धुरंधरों की पूरी टीम थी। जिनके सामने उनकी मीटिंग हुयी …..   पहले दिन ही सलीम सैफ़ी को दो खबरें करने का असाइनमेंट दिया गया एक खेल की खबर और एक स्पेशल फीचर की  ….. लेकिन किसे पता था कि आल इण्डिया जमाते सैफिया की लिखी उनकी पहली ही स्पेशल स्टोरी  कमाल कर देगी और राष्ट्रीय सहारा की फ्रंट पेज में हेडलाइन बन जाएगी … सैफ़ी जी बताते हैं कि अगले दिन ही उन्हें 1000 रूपये वेतन में बतौर स्ट्रिंगर की नियुक्ति सहारा अखबार में मिल गयी। इसके बाद तो उनके मित्र पत्रकार पी.क़े आर्या और सलीम सैफ़ी की ख़बरों ने मेरठ के अख़बारों में तहलका मचाना शुरू कर दिया। थोड़ी उठा पटक और फेरबदल को झेलते हुए सलीम सैफ़ी पत्रकारिता के साथ साथ 1996 में बी कॉम करने के बाद LL.B  भी कर चुके थे और व विशेष काबिलियत के चलते मेरठ के मशहूर नगीन प्रकाशन समूह के लिओ कम्प्यूटर कम्पनी में बतौर कम्पनी सेक्रेटरी एवं PRO अल्प समय के लिए नौकरी ज्वाइन कर ली थी क्योंकि पैसे की ज़रूरत भी थी और दमदार लोगो का साथ भी चाहिए था। हांलाकि इस बीच जागरण , उजाला में नौकरी के लिए सलीम सैफ़ी की कोशिशें जारी रहीं …. खास बात ये भी है कि इन घटनाक्रमों के बीच भी सलीम सैफ़ी की आला तालीम का सफर भी बदस्तूर जारी रहा…..एल.एल.एम में प्रवेश के लिए सेलेक्शन हुआ,राजनीति शास्त्र में एम.ए., एक्सपोर्ट मार्केटिंग मैनेजमेंट , पत्रकारिता और फ़िल्म निर्माण जैसे क्षेत्र में भी डिग्री हासिल करके आपने शिक्षा में भी बड़ा मुकाम हासिल किया….

टीवी मीडिया का कीड़ा तो ऑस्ट्रेलिया के दिग्गज पत्रकार जितार्थ भारद्वाज ने दिमाग में भरा 

स्पोर्ट्स की ख़बरों में टेबल सिस्टम फार्मूला की शुरुआत करने वाले कलमकार पत्रकार सलीम सैफी आगे बताते हैं कि इस दौरान आँखों देखी के तेजतर्रार युवा पत्रकार जितार्थ भारद्वाज मेरठ आये थे जहाँ एक खबर के दौरान उनसे मुलाक़ात हुयी और उन्होंने विजुअल मीडिया के लिए उनकी कवरेज में हर मुमकिन मदद की जिसके बाद जितार्थ भारद्वाज ने सलीम सैफ़ी की टीवी मीडिया की समझ को सराहते हुए उन्हें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आने का सुझाव दिया। कहाँ तो सलीम सैफ़ी प्रिंट मीडिया में जमने का ख्वाब पाले हुए थे लेकिन जितार्थ जी ने उन्हें जिले की पत्रकारिता छोड़कर उभरते टेलीविजन की चकाचौंध मीडिया में आने का ऑफर दिया ….. बात आयी थी तो असर भी लाज़मी था लिहाज़ा उनकी कही ये बात सैफ़ी जी के दिमाग में कौंधती रही ….. यहीं से सलीम जी ने दिल्ली में आज तक चैनल और आँखों देखी के लिए सिफारिशें लगानी शुरू कर दी थी क्यूंकि सलीम सैफ़ी को बखूबी मालूम था कि बगैर अप्रोच के मीडिया में नौकरी मिलना उस दौर में भी दूर की कौड़ी थी। 

कमर वहीद नक़वी ने कहा तुम सलीम हो नौकरी नहीं दे सकता – सैफ़ी 

सलीम सैफ़ी बताते हैं कि दिल्ली में पत्रकारिता करने का ख्वाब आँखों में लिए वो इधर उधर के कुछ सोर्सेस के ज़रिये सीधे जा पहुंचे उन दिनों आज तक के कर्ता धर्ता माने जा रहे मीडिया गुरु कमर वहीद नक़वी के सामने …. हौसले और उम्मीद की परवाज़ से लबरेज़ …. लेकिन यहाँ उनके कानों ने वो सुना जिस पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल था दरअसल कमर वहीद साहब ने उनसे साफ़ कहा कि “सलीम मैं तुम्हे रख तो लूँ लेकिन तुम एक मुसलमान हो ऐसे में मुझ पर नौकरी देने में पक्षपात का आरोप लग सकता है” ….. उनका ये तर्क हैरान करने वाला लेकिन सौ फ़ीसदी खरा था गालिबन ये बात 1997-98 की है जब सलीम सैफ़ी आजतक चैनल के लिए पूरी ज़ोर शोर से कोशिशों में जुटे थे …..  

मेरठ  के लोकल केबल चैनल में भी स्वतंत्र रूप से किया काम – सैफ़ी 

 इस बीच टीवी पत्रकारिता का फील्ड एक्सपीरियंस  लेने के लिए सलीम सैफ़ी ने मेरठ में सिटी हलचल नाम का लोकल केबिल चैनल पर स्वतंत्र रूप से सम्बद्ध होकर भी कई कार्यक्रमों का निर्माण किया,उस वक्त वीएचएस पर काम होता था । कैमरामैन सैमसन और सिंगर नवेद खान उस दौर में सलीम सैफ़ी के ख़ास मित्र और सहयोगी हुआ करते थे …. लोकल चैनल में काम करते हुए सलीम सैफ़ी ने मेरठ के मुद्दों को अपनी ख़बरों में उठाया और बेहतरीन न्यूज़ पैकेजिंग से कम समय में ही पत्रकारों में चर्चा के केंद्र बन गए लेकिन आँखों में ख्व्वाब तो आसमान छूने का था …. ….. लिहाज़ा बड़े चैनल को ज्वाइन करने के लिए तैयारी भी बड़ी करनी थी … लिहाज़ा रोजाना घर लौट कर नए आकाश को छूने की ज़िद को तराशा करते थे और नए अवसर को पैदा करने की चाहत पाले अगले दिन घर से फिर निकल पड़ते थे 

नोएडा के मारवाह स्टूडियो से किया फिल्म डायरेक्शन और टीवी पत्रकारिता का कोर्स – सलीम सैफ़ी 

चुनौतियों से ही मौके पैदा होते हैं लिहाज़ा कुछ नया कुछ बड़ा करने का अरमान आँखों में लिए सलीम सैफ़ी का सफर जा पहुंचा नोएडा …. उस वक्त के मशहूर मारवाह स्टूडियो के मीडिया इंस्टिट्यूट ए.ए.एफ.टी में फिल्म और टीवी पत्रकारिता की बारीकियां सीखने के लिए सलीम सैफ़ी ने हालात से कई बार समझौता किया …. माता पिता को हौसला देते रहे और आर्थिक स्थिति को अपनी उड़ान में बाधा नहीं बनने दिया …. सैफ़ी जी बताते हैं की  नोएडा में ट्रेनिंग के दौरान मारवाह स्टूडियो में होने वाली फिल्मों की शूटिंग से लेकर एडिटिंग डबिंग और दूसरी बारीकियां उन्होंने करीब से सीखी। मारवाह स्टूडियो के मालिक संदीप मारवाह ने भी क्लास के दौरान उनके पत्रकारिता से जुड़े सवालों पर कई बार उनकी हौसला आफज़ाई की …  फिल्म डायरेक्शन और टीवी पत्रकारिता का कोर्स इस तरह से उन्होंने पूरा किया …… 

सुहैब इलियासी कैम्प में मिली ऐतिहासिक इंट्री और तकदीर बदल गयी – सलीम सैफ़ी

 सलीम सैफ़ी की ज़िंदगी में हालात कैसे भी रहे हों लेकिन निगाहें हमेशा मंज़िल की जानिब ही लगी रही ….. फिर आया वो लम्हा जिसने तकदीर का फैसला करने में अहम किरदार निभाया …..  मारवाह स्टूडियो में कोर्स ख़त्म करने के बाद नौकरी की चुनौती सामने आ चुकी थी …. क्यूंकि मेरठ वापस लौटना सलीम सैफ़ी के किरदार को मंज़ूर नहीं था  …..   इस बीच किसी के ज़रिये दिल्ली पुलिस के बड़े अधिकारी कमर अहमद के बारे में पता चला जो खुद भी मेरठ से तालुक रखते थे। इनके ख़ास खैख्वाहोँ ने  बताया कि अगर बड़े दिल्ली पुलिस के जॉइंट कमिश्नर क़मर अहमद से बात बन जाए तो उस दौर के सबसे बड़े टीवी स्टार,एंकर,प्रोड्यूसर और डायरेक्टर सुहैब इलियासी के कैम्प में सैफ़ी जी को आसानी से इंट्री मिल सकती है क्यूंकि क़मर अहमद और सुहैब इलियासी के बीच अच्छे रिश्ते थे। एक बार फिर सैफ़ी जी को जुगाड़ तंत्र का सहारा लेना पड़ा और कमर अहमद के सहारे सुहैब इलियासी के ज़ी टीवी पर प्रसारित होने वाले इंडियाज़ मोस्ट वॉन्टेड के सुपर हिट शो में वो शामिल हो गया। बस यही वो मौक़ा था जिसने सलीम सैफ़ी की पत्रकारिता में आकार लेती धार को और तीखा करना शुरू कर दिया था  ….. स्क्रिप्ट लिखना हो या विसुअल क्रिएशन हो या तेज़ रफ़्तार से किसी खबर की शूटिंग और पैकेजिंग करना हो उनतीस साल बाद भी बड़ी साफगोई से सलीम सैफ़ी मानते हैं की टीआरपी का फन और खबर पेश करने का हुनर उन्होंने सुहैब इलियासी के साथ रह कर सीखा।

BAG के मालिक राजीव शुक्ला के रोजाना शो में बना दिल्ली में क्राइम रिपोर्टर – सैफ़ी 

ये 1998 – 99 का वो दौर आ चुका था जब बीएजी फिल्म्स के मालिक राजीव शुक्ला अपने नए न्यूज़ शो रोजाना की शुरुआत करने जा रहे थे।  लिहाज़ा एक नयी उम्मीद और नयी छलांग मारने के लिए  उन्होंने अजीत अंजुम का रुख किया .. कहते हैं न कि नो रिस्क नो गेन ….. कामयाबी ने तो जैसे सलीम सैफ़ी को गले लगाने का मन ही बना लिया था लिहाज़ा पहली मीटिंग में ही उन्हें क्राइम रिपोर्टर के तौर पर 10 हज़ार तनख्वाह पर ज्वाइनिंग का ऑफर मिल गया जिसको उन्होंने तुरतं मान लिया क्यूंकि टीवी पत्रकारिता ही सैफ़ी जी की पहली और आखिरी मंज़िल थी  जिसकी खातिर उन्होंने मेरठ की तंग गालियां छोड़ दिल्ली के मंडी में पाँव ज़माने की कसम खा ली थी। अकड़ू लेकिन ख़बरों की समझ में माहिर अजीत अंजुम के साथ कई बड़ी और चुनौती भरी ख़बरों को करने से सलीम सैफ़ी की धमक दिल्ली मीडिया में गूंजने लगी थी । समय आगे बढ़ा और अब तक फिल्म डायरेक्टर के साथ साथ टीवी पत्रकार के तौर पर ये नाम मीडिया जगत में छा गया था। एनडीटीवी की वर्तिका नंदा का ज़िक्र करते हुए सलीम सैफ़ी बताते हैं की उन दिनों दिल्ली में क्राइम रिपोर्ट्स में उनकी खबरें चर्चाओं में रहती थी क्यूंकि ज्यादातर खबरें वो काल्पनिक अंदाज़ में बेहतरीन स्क्रिप्टिंग के साथ पेश कर रहे थे। ख़बरों को क्रिएट करने की वजह से संस्थान में सुकेश रंजन की चमचागिरी को पीछे छोड़ते हुए सलीम सैफ़ी अजीत अंजुम के चहेते रिपोर्टर बन गए थे 

दिल्ली से निकल कर उत्तराखंड में बनाया गया दूरदर्शन का पहला अधिकृत प्रभारी – 

इसी बीच तीन नए राज्य बन रहे थे लिहाज़ा बेहतरीन परफॉर्मेंस की वजह से राजीव शुक्ला की कोर टीम ने उन्हें उत्तराखंड में दूरदर्शन के इंचार्ज की ज़िम्मेदारी देने का फैसला कर लिया …. आपको बता दें की BAG कम्पनी को उस वक्त दूरदर्शन की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी ऐसे में  राजीव शुक्ला उनकी पत्नी अनुराधा प्रसाद और अजीत अंजुम जी के ख़ास प्रोत्साहन पर सलीम सैफ़ी ने दिल्ली से निकल कर एक नए नवेले राज्य के इंचार्ज की भूमिका स्वीकार कर ली। अक्टूबर 2000 में वो दिन भी आ गया जब एक नए राज्य , नए स्टाफ नयी भूमिका में उत्तराखंड आकर सलीम सैफ़ी ने बेहतरीन काम को अंजाम देना शुरू कर दिया ….. सरकार और प्रशासन , मुख्यमंत्री और कैबिनेट मिनिस्टर्स में सलीम सैफ़ी की पकड़ लगातार मजबूत होती चली गयी बकौल सैफ़ी जी इस बीच उनको सबसे ज्यादा सहयोग मिला उत्तर प्रदेश के मंत्री रहे रमेश पोखरियाल निशंक से जिनका ज़िक्र वो ख़ास तौर पर करते हैं ….. देहरादून की पहली नियुक्ति के दौरान सलीम सैफ़ी दैनिक जागरण के क्राइम रिपोर्टर अनिल सती का  विशेष ज़िक्र करते हैं जिन्होंने साल  2000 से 2002 के बीच सैफ़ी जी को स्थापित होने में अहम योगदान दिया। सलीम सैफ़ी बताते हैं कि उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री नित्यानद स्वामी के लाडले पत्रकारों में उनका जल्द ही शुमार होने लगा था और उनकी मौजूदगी के बिना मुख्यमंत्री अपने सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल नहीं होते थे। ये एक बेबाक और प्रतिभाशाली पत्रकार के तौर पर सलीम सैफ़ी की प्रतिभा का नायाब उदाहरण था जिसने उन्हें पहाड़ में कामयाबी के शिखर पर आगे बढ़ाना शुरू कर दिया था। इसकी वजह भी साफ़ थी क्यूंकि टीवी पत्रकारिता में सलीम सैफी उत्तराखंड में पहले अधिकृत पत्रकार थे।

सैफ़ी जी के मुताबिक़ उस वक्त के पत्रकारों में नरेंद्र सेठी,सतीश शर्मा ,राजेन्द्र जोशी,सुभाष गुप्ता,राजेन्द्र काला,अनुपम त्रिवेदी,चेतन गुरुंग पांडेय जी और विकास धूलिया उत्तराखंड की सहाफत में बड़े नाम माने जाते थे। मोहम्मद सलीम सैफ़ी …… अपनी अलग छवि के साथ पत्रकारिता में एक ऐसा नाम बन चुका था जिसको सियासी गलियारों में एक निडर , निष्पक्ष और साफगोई से लिखने वाला बेबाक टीवी पत्रकार माना जाने लगा था .. जिनकी ख़बरों ने न सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियाँ बटोरीं बल्कि दिल्ली से लेकर उत्तराखंड तक आम आदमी के मुद्दों को भी बेहद संजीदगी और प्रभावशाली अंदाज़ में पेश किया। हांलाकि हालातों के चलते इनको दूरदर्शन से टाटा होना पड़ा  और कुछ समय तक उत्तराखंड में जैन टीवी का भी स्टेट हेड बन कर काम किया। 

सीएम भगत सिंह कोश्यारी की किचेन कैबिनेट में हुआ शामिल , मौकों का मिला फायदा – सैफ़ी 

उत्तराखंड में रहते हुए पत्रकारिता के साथ साथ सलीम सैफ़ी की पहचान बड़े रसूखदार लोगों में भी तेज़ी से बढ़ रही थी … सलीम सैफ़ी बताते हैं की भाजपा सांसद अजय भट्ट , विश्वास डावर ,पत्रकार उमेश कुमार, विधायक पुष्कर सिंह धामी,ज्योति प्रसाद गेरुला और वो खुद सलीम सैफ़ी को भगत दा की कोर टीम माना जाने लगा था , बतौर पत्रकार उनकी पहुँच मुख्यमंत्री के कमरे तक धड़ल्ले से होने लगी और कैबिनेट बैठकों में भी आना जाना ज़ारी रहा। सरकार के करीब आने पर पता चला की पोलिटिकल पार्टियां मीडिया को पैसे भी देती हैं।  

2002 में आज तक में नौकरी के लिए अरुण पुरी तक लगवाई फ़िल्मकार मुज़फ्फर अली से सिफारिश  – सैफ़ी 

इन सभी उठा पटक के बीच आज तक का मोह दिल से छूटा नहीं था लिहाज़ा सैफ़ी की निगाहें हमेशा आजतक की नौकरी पाने में लगी रही और काफी कोशिशों के बाद एक बार फिर सिफारिश का ही सहारा लेना पड़ा और फ़िल्मकार मुज़फ्फर अली के ज़रिये आज तक के मालिक अरुण पुरी तक पहुंचे सलीम सैफ़ी जहाँ  बराय मेहरबानी एक अदद नौकरी की उनकी सालों पुरानी मुराद पूरी हो गयी और वो देश के सबसे बड़े मीडिया ब्रांड का हिस्सा बन गए। लेकिन चुनौती यहाँ भी सामने आड़े आ गयी आज तक के न्यूज़ डायरेक्टर उदय शंकर ने चैलेंज दिया कि मेरठ में टीआरपी लाकर दिखाओ तो ब्यूरो खोल दिया जायेगा जिसको बेहद कम समय में ही शानदार और नेशनल टीआरपी की ख़बरें देकर  ताबड़तोड़ बैटिंग के ज़रिये सलीम सैफ़ी ने अपनी काबिलियत भी आज तक में साबित कर दी।  इस बीच मेरठ, मुज़फ़्फरनगर में  किसानों के आंदोलन से जुडी ख़बरों की देश में खूब चर्चाएं होने लगी थी हेड लाइन में सलीम सैफ़ी की खबरें जगह बना रही थीं । सलीम सैफ़ी की इस कामयाबी से सबसे ज्यादा ख़ुशी परिवार में किसी को मिल रही थी तो वो थे उनके पिता जी इस्लाम सैफ़ी और छोटे भाई नईम सैफ़ी जो हर ज़रूरत के वक्त उनके साथ रहते थे। 

मेरठ की कामयाबी ने दिल्ली में दिलाई बड़ी सलीम सैफ़ी को राष्ट्रीय पहचान – सैफ़ी 

मेरठ में आज तक के इतिहास का नया अध्याय सलीम सैफ़ी लिख चुके थे। उत्तर प्रदेश में गोविन्द पंत राजू के सामने खुद को ख़बरों और टीआरपी के दिग्गज के तौर पर साबित करने वाले सलीम सैफ़ी को जल्द ही दिल्ली में शानदार मौक़ा मिला और उन्होंने दिल्ली की चकाचौंध मीडिया में ध्रुव तारे की तरह चमकना शुरू कर दिया था जिसकी खबरिया समझ और धमक के आगे राजधानी के बड़े बड़े रिपोर्टर्स भी फीके पड़ रहे थे। अलग चलने और अलग करने की ज़िद्द ने ही दिल्ली में सलीम सैफ़ी को कामयाब बना दिया था …. पश्चिमी यूपी में क्राइम रिपोर्टिंग करने का अनुभव और सुहैब इलियासी के वर्किंग स्टाइल ने सलीम सैफ़ी को अपराध की ख़बरों का मास्टर बना दिया था …  पुलिस मैनेजमेंट हो या मुखबिरों से ख़बरों की सुराग हासिल करना सलीम सैफ़ी का अपना वर्किंग स्टाइल था जो बेहद कारगर साबित हो रहा था …. 

न्यूज़ वायरस के बैनर तले सलीम सैफ़ी ने शुरू की अपनी फिल्म प्रोडक्शन कम्पनी — 

इस बीच पारिवारिक वजहों से सलीम सैफ़ी का दिल्ली की वर्चुअल शैली की रौनक और रफ़्तार से मन उचट गया और उन्होंने वापस देवभूमि लौटने का मन बना लिया।  ऐसे में देहरादून को ही उन्होंने अपनी  कर्मभूमि चुनी और अपने ख़ास दोस्त रहे पत्रकार उमेश कुमार,छोटे भाई नईम सैफ़ी और पत्रकार अभिषेक सिन्हा के सहयोग से साल 2009 में खुद की एक मीडिया एवं फिल्म प्रोडक्शन कंपनी खोली “न्यूज़ वायरस नेटवर्क प्राइवेट लिमिटेड”  …. इस वक़्त तक लम्बा इतिहास अपने पीछे बना चुके सलीम सैफ़ी पत्रकारिता में जब भी जहाँ भी रहे अपनी संजीदा ख़बरों से अलग प्रभाव छोड़ा ऐसे में फिल्म प्रोडक्शन की एक कामयाब कम्पनी खड़ी करके आज  सलीम सैफ़ी की प्रोडक्शन कम्पनी एक दैनिक समाचार पत्र के प्रकाशन और न्यूज़ पोर्टल के साथ साथ शानदार विज्ञापन फिल्मों का निर्माण कर रही है। इस सफर में सैफ़ी जी ने दूरदर्शन पर भी अपनी पकड़ मजबूत की और कई लोकप्रिय शो जनता के लिए बनाए जिसमें “आपकी आवाज़” और “देवभूमि” खासे लोकप्रिय हुए …. सलीम सैफ़ी की सफलता का ये सफर आज डेली अखबार और न्यूज़ पोर्टल सहित मीडिया कंपनी के तौर पर ताज़ी हवा की तरह देश भर के कई राज्यों में कामयाबी की खुशबू बिखेर रहे हैं हांलाकि इस लंबे सफर मे आपने तमाम संस्थानों को खड़ा होने में अमूल्य योगदान दिया है खास तौर पर  BCCI के पूर्व उपाध्यक्ष रहे राजीव शुक्ला के न्यूज़ चैनल” न्यूज़ 24″ को पश्चिमी यूपी और उत्तराखंड में स्थापित किया ,भास्कर न्यूज चैनल , मुंसिफ टीवी , समाचार प्लस , शाह टाइम्स और न्यूज़ फर्स्ट ग्रुप में शीर्ष पदों पर सम्बद्ध रहते हुए अपनी प्रतिभा का लोहा भी मनवाया । आज सलीम सैफ़ी उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के जय भारत टीवी में संपादकीय सलाहकार के तौर पर नई प्रतिभाओं को निखार रहे हैं।

जिन शख्सियतों ने बगैर किसी लाभ के ज़िंदगी में रंग भरे उनको भी किया सलीम सैफ़ी ने याद – 

बड़ी बेबाकी और खुले दिल से सलीम सैफ़ी मानते हैं कि उत्तराखंड आने के बाद उनको जिन पुराने मित्रों और शुभचिंतकों से उम्मीदें थी उन्होंने तो कोई साथ नहीं दिया लेकिन जिन महानुभावों से उनका कोई ख़ास सम्बन्ध पहले कभी नहीं रहा था उन्होंने दिल खोल कर सलीम सैफ़ी को स्थापित होने में सहयोग किया …. सैफ़ी बड़े फक्र से आज उन लोगों का नाम लेते हैं जिन्हीने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर सलीम सैफ़ी को कामयाब सलीम सैफ़ी बनाया,इनमें नामों की फेरहिस्त तो लम्बी है लेकिन जिनका ज़िक्र वो करते हैं उनमें केन्दीय शिक्षा मंत्री डॉक्टर रमेश पोखरियाल निशंक,महाराष्ट्र और गोवा के  गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी ,उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे नित्यानंद स्वामी , कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक,पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह,पूर्व मुख्य सचिव राकेश शर्मा ,अपर मुख्य सचिव मणिपुर एम एच खान,गढ़वाल कमिश्नर रहे विनोद शर्मा,एस.एस.पी देहरादून रहे अमित सिन्हा , टेक्निकल यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी प्रोफेसर दुर्ग सिंह चौहान,दूरदर्शन देहरादून के निदेशक रहे मो रफीक खान,पी.एस. रावत और सूचना विभाग के स्वर्गीय संयुक्त निदेशक बीर सिंह रावत शामिल हैं जिनका वो बड़ी विनम्रता से शुक्रिया अदा कर रहे हैं,अहसान मान रहे है,कह रहे है अगर इन लोगो निःस्वार्थ,ईमानदार और मज़बूत सहयोग नही मिलता तो शायद मानवता से यकीन उठ जाता ये सभी लोग मानवता की मिसाल है क्योंकि दिल्ली के मीडिया गैंग ने तो मीडिया कैरियर बर्बाद करने में कोई कसर नही छोड़ी थी मगर ये सब दैवीय सहायता बनकर मेरे जीवन मे आए और बिना किसी लालच के मदद की।

जिन लोगों का मिला समर्थन सहयोग उन मित्रों का भी तहे दिल से शुक्रिया – सैफ़ी 

29 साल के सफर में वो दिन भी आया जब देहरादून की पहली नियुक्ति के दौरान साल 2000 से 2002 के बीच दैनिक जागरण के क्राइम रिपोर्टर अनिल सती का विशेष सहयोग मिला,  और उनके मित्र पत्रकार उमेश कुमार (समाचार प्लस और एन.एन.आई के संस्थापक) का क़दम क़दम पर महत्वपूर्ण योगदान और सच्चा सहयोग भी कामयाबी की कुंजी साबित हुआ। परिवार की बात करें तो सलीम सैफ़ी अपने छोटे भाई का ज़िक्र कर भावुक हो जाते हैं उनका कहना है कि मेरठ में सबसे महत्वपूर्ण सहयोग उनके छोटे भाई नईम सैफ़ी से मिला हर पल,हर जगह,नईम की ही वजह से ही उसके बचपन के साथी उस्मान चौधरी को मेरठ में आजतक में अपना उत्तराधिकारी बनाया गया  जबकि सैफ़ी जी के घनिष्ठ मित्र डॉ ललित भारद्वाज हर लिहाज़ से आज तक के लिए उस समय फिट थे, उन्होंने उस्मान चौधरी के आजतक के लिए नियुक्त होने पर हांलाकि खुद  नाराज़गी जताई ज़रूर थी लेकिन जल्द ही ललित भारद्वाज ने अपनी नाराज़गी भुला भी दी और आज भी दोनों एक सच्चे दोस्त के रूप में लगातार आगे बढ़ रहे है।

मशहूर मीडिया संस्थान न्यूज़ फर्स्ट समूह के आज चेयरमैन है डॉ ललित भारद्वाज । आज तक की मेरठ नियुक्ति के दौरान पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चौबीसों घंटे मेरा मित्र श्याम परमार और उसका मित्र अश्विनी प्रकाश शर्मा मेरी रीढ़ की हड्डी बने रहे,मेरे इशारों और मनोइच्छा को भांपते हुए शानदार शॉट्स निकालते थे और मॉडलिंग छोड़कर मेरे साथ पत्रकारिता शुरू करने वाले सरफ़राज़ सैफ़ी,अब्दुल कादिर उर्फ विक्का व फ़िरोज़ आलम उर्फ गाँधी भी उनके अच्छे शिष्य और सहयोगी के रूप में महत्वपूर्ण साबित हुए।

साल 2008 के अंत में देहरादून की दूसरी और महत्वपूर्ण पारी शुरू करने में जिसने सबसे महत्वपूर्ण साथ निभाया वो शिष्य और छोटे भाई हैं अभिषेक सिन्हा, जिन्होंने उत्तराखंड में उनकी न्यूज़ 24 टीम का हिस्सा बनकर एक तेज़तर्रार के रूप में अपनी प्रतिभा का बखूबी परिचय दिया था । यादों ने करवट लेते हुए आगे ज़िक्र किया कि सुहैल सैफ़ी ने बतौर कैमरामैन,वसीम अहमद और आसिफ ज़ैदी ने बतौर एंकर और स्क्रिप्ट राइटर एक शानदार टीम के रूप में उनकी  मीडिया कंपनी को खड़ा होने में अहम भूमिका निभाई और मीडिया बिज़नेस का हुनर सिखाया शाह टाइम्स में जूनियर साथी रहे अफ़ज़ाल राणा ने,जो आज भी याद आ रहे हैं जिन्होंने सिखाया था संबंध स्थापित करने की कला कैसे हुनरमंद बनाती है, सरकारी मीडिया बिज़नेस कैसे  होता है ।  हौसला न टूटने का साहस टाइम्स ऑफ इण्डिया में रहे  घनिष्ठतम मित्र अंकुर अग्रवाल की नसीहतों ने दिया।

आज अपने सफरनामें में सलीम सैफ़ी ने जिन जिन लोगों का ज़िक्र किया वो बताता है कि कामयाबी के शिखर पर बैठ कर भी अपने अतीत के सहयोगियों को याद रखना बड़े दिल के इंसान की पहचान है। लेकिन ये सच है कि “जिंदगी हर कदम, एक नई जंग है” इन 29 सालो में पत्रकार और पत्रकारिता सबकुछ बदल गया,रिश्ते बदल,पत्रकारिता बदल गई, मान-सम्मान-स्वाभिमान के पैमाने बदल गए, संवेनशीलता खत्म हो गई, मानवता और मानवीय पहलुओं को आज की टीवी पत्रकारिता ने तार तार कर दिया,एक-दूसरे का सम्मान मनो से मिट गया,टीवी पत्रकारिता सिर्फ़ अपना अस्तिव बचाने और आर्थिक हितों को साधने के लिए किसी के भी एजेंडा प्रोमोशन का मंच बनकर रह गया है,शायद पत्रकारिता अब मर चुकी है अब उसके कोई मायने नही बचे “ख़बर मतलब खबर”

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