Saturday, April 27, 2024
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रानी लक्ष्मीबाई जयंती : जानिए झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीर गाथा

महारानी लक्ष्मी बाई की जयंती 19 नवंबर को मनाई जाती है। उनके राष्ट्र प्रेम, साहस और प्रेम के बलिदान की अमर कहानी बुन्देलखण्ड के इतिहास को गौरान्वित करती है….. जो आज भी महिलाओ के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। रानी लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में 19 नवम्बर 1828 को हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था।

रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की गाथा
सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद इनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया पर लेकिन चार महीने की उम्र में ही उसकी मृत्यु हो गई। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने के कारण उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद कुछ दिनों बाद ही राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।सन् 1857 के सितंबर-अक्तूबर महीने में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झांसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलतापूर्वक इसे विफल कर दिया। इसके बाद 1858 के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झांसी की ओर बढ़ना शुरू किया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ्तों की लडा़ई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर कब्जा कर लिया। हालांकि रानी, दामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बच कर भागने में सफल हो गई। रानी झांसी से भाग कर कालपी पहुंची और तात्या टोपे से मिली। तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया। 17 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा-की-सराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई की मौत हो गई। रानी लक्ष्मी बाई बेहद ही कम उम्र में झाँसी की शासिका बन गई। जब उनके हाथ में झांसी राज्य की कमान आई तब उनकी उम्र महज 18 साल ही थी।

अंग्रेजों पर पड़ी भारी : लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया…. दोनों हाथों में तलवार लेकर घोड़े पर सवार और पीठ पर बच्चे को लिए युद्ध के मैदान में अंग्रेजो पर टूट पड़ीं। अंग्रेजों का मनोबल टूट गया था…. लेकिन अंग्रेजों की विशाल सेना के मुकाबले झांसी की सेना भला कब तक टिकती। आखिर में अंग्रेजो का झाँसी पर कब्ज़ा हो गया था
स्वतंत्रता के लिए बलिदान का संदेश : अंग्रेजो के साथ लड़ाई में रानी लक्ष्मीबाई बुरी तरह घायल हो गई थी। वह चाहती थीं कि उनका शरीर को अंग्रेज हाथ न लगाए। उनकी इच्छा के मुताबिक उनके कुछ सैनिकों ने लक्ष्मी बाई को बाबा गंगादास की कुटिया में पहुंचाय और कुटिया में ही 18 जून, 1858 को लक्ष्मी बाई ने वीरगति प्राप्त की। वहीं उनका अंतिम संस्कार किया गया। उन्होंने स्वातंत्र्य के लिए अपने जीवन की आहूति देकर स्वतंत्रता के लिए बलिदान का सन्देश दिया..

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