लोक गाथाओं में देवभूमि उत्तराखंड की एक प्रेम कहानी “राजूला-मालूशाही”
-आकांक्षा थापा
आपने रोमियो-जूलियट, हीर-रांझा, सोनी-महिवाल जैसी अमर प्रेम कहानियां तो सुनी होंगी , और इनकी मिसाल सदियों से प्रेमी भी देते आ रहे हैं लेकिन आज में हम जानेंगे एक ऐसी प्रेम कहानी के बारें में जो इन सबसे बिलकुल अलग है। जी हां, हम आपको बताएंगे राजूला मालूशाही की अमर प्रेम कहानी के बारे में, जिसे आज भी देवभूमि में आदर्श माना जाता है। गोपाल बाबू गोस्वामी जैसे बड़े लोक संगीतकारों ने भी राजुला मालूशाही की प्रेम कहानी पर गाने लिखे और गाये है।
चलिए फिर देखते हैं राजूला मालूशाही की ये प्रेम गाथा –
कहानी की शुरुआत होती है दो राजाओं से , एक था भोंठ प्रदेश का राजा – सुनपत शौका और दूसरा था बैराट रियासत यानि वर्त्तमान में अल्मोड़ा चौखुटिया का राजा दुलाशाही। दोनों ही राजा संपन्न थे, काफी समृद्ध थे लेकिन दोनों में एक समानता थी , दोनों ही राजा संतानहीन थे।
संयोगवश दोनों ही राजा संतान प्राप्ति के लिए हरिद्वार जाते हैं ,और वहाँ उनकी मुलाकात होती है। दोनों अपनी समस्या के बारे में एक दूसरे को बताते हैं और फिर आपस में यह फैसला लेते हैं कि ” अगर हमारी विपरीत लिंग की संताने होंगी तो हम आपस में उनका विवाह करा देंगे।” हैरानी की बात यह है की, फलस्वरूप होता भी यही है। भोंठ प्रदेश के राजा सुनपत शौका के घर में एक खूबसूरत कन्या का जन्म होता है जिसका नाम राजुला रखा जाता है…. तो वहीँ बैराट रियासत के राजा दुलाशाही के घर में एक पुत्र प्राप्ति होती है, और उसका नाम मालूशाही रखा जाता है। इसी बीच राजा दुलाशाही की मौत हो जाती है और राजुला मालूशाही का विवाह एक राज़ रह जाता है।
वहीँ राजुला और मालूशाही समय के साथ साथ जवान हो रहे थे। राजुला की अपार सुंदरता देख हूण देश का राजा विक्खीपाल सुनपत शौका से उनकी बेटी का हाथ मांगता है और उन्हें धमकाता है कि अगर राजुला का विवाह उससे नहीं हुआ तो वह पूरा भोंठ प्रदेश उजाड़ देगा। वहीँ, राजुला और मालूशाही दोनों ही एक दूसरे को सपने में देखते हैं , उस स्वप्न में दोनों को एक दूसरे से प्रेम हो जाता है और मालू राजुला को वचन देता है की वह उसे व्याह कर ले जायेगा। राजुला ने तत्काल एक पक्षी के हाथों मालूशाही को अपना सन्देश पहुँचाया , जिसमे उसने लिखा — “मैं तुम्हारी राजुला हूँ , और उसने पूरी घटना का उल्लेख करते हुए कहा की मैं तुमसे मिलना चाहती हूँ और उत्तरायणी मेला बागेश्वर में मैं तुम्हारा इंतज़ार करुँगी। ”
पत्र मिलते ही मालूशाही प्रसन्न हो जाता है ,लेकिन जैसे ही राजा दुलाशाही को इस बात का पता लगता है , वह तुरंत अपने बेटे को कोठरी में बंद कर देता है। वहीँ दूसरी ओर , राजुला बागेश्वर मेले जाती है लेकिन पुरे मेले में उसे मालूशाही का कोई आता पता नही मिलता। यह देखकर राजुला निराश हो जाती है । वो निर्णय लेती है की वो बैराट रियासत में जाकर मालूशाही से मिलकर ही दम लेगी। इस बीच , राजुला को रास्ते में बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है | वही मालूशाही भी शौका देश जाने की ज़िद्द करता है, लेकिन उसकी माँ और अन्य रानियाँ नहीं मानती है, लेकिन मालूशाही डटा रहता है । मालूशाही की माँ और रानियां चुपके से एक जड़ी सुंघा कर उसे 12 साल के लिए सुला देते हैं। आखिर में राजुला पहाड़ो में भटकते भटकते वैराट पहुँचती है। लेकिन वो मालूशाही से मिल नहीं पाती क्यूंकि वो निद्रा में होता है , राजुला उसे एक हीरे की अंगूठी पहनाती है और उसके लिए एक पत्र छोड़ जाती है। मालूशाही जब होश में आता है उसे वह पत्र और अंगूठी मिलती है। उसमे राजुला ने मालूशाही को सब अच्छे से समझाया होता है, और लिखा होता है की अगर तुम्हे मुझसे मिलना है तो हूण देश आजाना।
अब मालूशाही एक भिक्षु का भेष धारण करके राजुला की तलाश में निकल पड़ता है। हूण देश पहुंचकर जब वो राजुला को सामने से देखता है , उसकी सुंदरता देख वो मंत्र मुग्ध हो जाता है। वहीं जब राजूला उसे भिक्षा देने आती है तो मालू उसे सब बता देता है। ख़ुशी से पागल राजूला उसे अपने महल ले जाती है और अपने राजा से कहती है की – “यह एक कमाल का ज्योतिष है और इसे हमे अपने महल में रख लेना चाहिए।” राजा मालू को रखने के लिए तो मान जाता है लेकिन कही न कही उसे उसपर शक हो जाता है। आखिर विक्खीपाल का शक़ सच में तब्दील हो जाता है और वो मालू को ज़हर पिला देता है । उसकी यह हालत देख के राजूला अचेत हो जाती है। वही मालू के मामा मृतुसिंघ सही समय पर हूण देश पहुँच जाते हैं और वहाँ हमला कर विक्खीपाल को मार देते हैं। मृतुसिंघ के साथ आये वैद्य के इलाज से मालूशाही ठीक हो जाता है। वह महल पहुंचकर राजुला को जगाता है और फ़ौरन बैराट संदेसा भेजता है की वह राजुला को रानी बना कर ला रहा है। बैराट पहुंचकर दोनों की धूम धाम से शादी होती है और दोनों ख़ुशी ख़ुशी अपना जीवन व्यतीत करते हैं .
यह कहानी भी उनके अजर-अमर प्रेम की दास्तान बन इतिहास में जड़ गई कि किस प्रकार एक राजा सामान्य सी शौके की कन्या के लिये राज-पाट छोडक़र जोगी का भेष बनाकर वन-वन भटका।
यह थी राजुला मालूशाही की अमर प्रेम कहानी जो बाकि कहानियों से एकदम हटके है। उत्तराखंड में आज भी राजुला-मालूशाही की मिसाल दी जाती है और प्रेमी उन्हें अपना आदर्श मानते हैं।