कम तीव्रता के भूकंप बने हिमलयी ग्लेशियर्स के लिए खतरा, ब्लैक कार्बन भी कर रहा है वातावरण को खोखला
-आकांक्षा थापा
शुक्रवार रात तजाकिस्तान में जोरदार भूकंप आया और उत्तर भारत में भी इसके झटके महसूस किये गए। 6.3 तीव्रता वाले इस भूकंप के झटके दिल्ली-एनसीआर समेत समूचे उत्तर भारत ने महसूस किये। राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के अनुसार भूकंप का केंद्र तजाकिस्तान में था। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून समेत उत्तरकाशी, चमोली, श्रीनगर और ऋषिकेश में भी लोगो ने भूकंप की थर्राहट महसूस की। भले ही इतने कम तीव्रता वाले भूकंप से लोगो को कोई नुक्सान ना पहुंचा हो , लेकिन यही छोटे भूकंप हिमालयी ग्लेशियरों के लिए खतरा बन चुके हैं।
कम तीव्रता वाले भूकंप से कम्पन तो महसूस नहीं होती, लेकिन यह ग्लेशियरों में कम्पन पैदा कर उन्हें कमज़ोर बनाते हैं। इसी कम्पन से धीरे -धीरे ग्लेशियर कमज़ोर होते जाते हैं, और भूकंप की स्थिति में इनकी टूटने की सम्भावना सामान्य से अधिक हो जाती है। ऐसे में , हिमालय के ग्लेशियरों की स्थिति को देखते हुए इन छोटे भूकंपो को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता है।
भूकंप के अलावा, ब्लैक कार्बन और मानवीय हस्तक्षेप भी हिमालयी ग्लेशियर्स के लिए खतरा बने हुए हैं।
ब्लैक कार्बन क्यों है खतरनाक?
ब्लैक कार्बन जीवाश्म एवं अन्य जैव ईंधनों के अपूर्ण दहन, ऑटोमोबाइल तथा कोयला आधारित ऊर्जा सयंत्रों से निकलने वाला एक पार्टिकुलेट मैटर है। यह एक अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक है जो उत्सर्जन के बाद कुछ दिनों से लेकर कई सप्ताह तक वायुमंडल में बना रहता है। वायुमंडल में इसके अल्प स्थायित्व के बावजूद यह जलवायु, हिमनदों, कृषि, मानव स्वास्थ्य पर व्यापक प्रभाव डालता है। भारत और चीन, दोनों ही दुनिया में सबसे ज्यादा ब्लैक कार्बन उत्पन्न करते हैं, जो दुनिया का लगभग 25 -35 % होता है। आने वाले दशकों में इसकी ख़ासा वृद्धि होने की आशंका है। ब्लैक कार्बन में “ब्लैक मैटेरियल्स” होते हैं जो अधिक प्रकाश को अवशोषित करती है और तापमान बढ़ाने वाले इन्फ्रा-रेड विकिरण का उत्सर्जन करती है। इसलिए, जब उच्च हिमालय में ब्लैक कार्बन में वृद्धि होती है, तब हिमालय के ग्लेशियर्स बहुत तेज़ी से पिघलने लगते हैं।
ज्यादा मानवीय हस्तक्षेप भी एक बड़ा कारण….
संवेदनशील क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप और धरती के बढ़ते तापमान से लगातार प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इन्सान हर जगह अपना विकास और अपना ही फायदा देखता आया है। लेकिन अब समय है सचेत होने का और सभी प्राकृतिक संसाधनों का उचित रूप से इस्तेमाल करने का। हमें सोच समझ के कदम उठाना होगा क्यूंकि कहीं ना कहीं हमारी इन छोटी गलतियों से पर्यावरण को बहुत बड़ा नुक्सान पहुँच सकता है। `