पहाड़ की अनमोल यादें – महात्मा गाँधी का उत्तराखंड के लोगों से था दिल का रिश्ता
महात्मा गांधी का देवभूमि उत्तराखंड से गहरा जुड़ाव रहा है। कहा जाता है बापू उत्तराखंड आने का बहाना भी ढूंढा करते थे …. मसूरी की शांति उन्हें बेहद प्रिय थी हरिद्वार का अध्यत्म उन्हें आकर्षित करता था यही वजह है कि साउथ अफ्रीका से भारत लौटने के बाद वह सीधे हरिद्वार पहुंचे थे। यहां बापू सन 1915 में महाकुंभ में शामिल हुए और अपने भाषणों में अंधविश्वास पर खूब तल्ख़ बयां भी दिए थे। इसके अलावा भी कई अनमोल यादें आज भी लोगों के ज़ेहन में ताज़ा हैं। आज अक्टूबर की दो तारीख है यानी उस महान आत्मा को याद करने का दिन जिसको दुनिया महात्मा कहती है…..आइये आपको ले चलते हैं बापू के प्रिय राज्य उत्तराखंड जहां बापू की आत्मा बसती थी जहां से बापू की अनगिनत यादे जुड़ी हैं….
गांधी जी जब साउथ अफ्रीका में वहां के लोगों के संघर्ष में सक्रिय थे। उस दौरान भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध मुक्ति संघर्ष रफ़्तार में आ रहा था उसी दौरान कांग्रेस के संस्थापकों में से एक सी एफ एंडूज ने गांधी जी को पत्र लिखा कि भारत को उनकी इस समय ज्यादा जरूरत है। ऐसे में जब महात्मा गाँधी को भारत लौटकर रविंद्र नाथ टैगोर, स्वामी श्रद्धानंद और पं. मदन मोहन मालवीय से मिलने की सलाह दी गयी । उनकी सलाह पर सन् 1915 में गांधी जी साउथ अफ्रीका से भारत लौटे और सीधे स्वामी श्रद्धानंद से मिलने हरिद्वार पहुंचे।
कांगड़ी ग्राम में उनकी स्वामी जी से मुलाकात हुई। दोनों ने आजादी के आंदोलन पर गहन मंत्रणा की। स्वामी श्रद्धानंद उनकी सादगी व फकीरी देखकर बेहद प्रभावित हुए थे। 1915 में हरिद्वार में कुंभ मेला था। देश-विदेश के श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा हुआ था। महात्मा गांधी का डेरा भी कुंभ में लगा था। इसके बाद गांधी जी 1917 में व्याख्यान देने भी गुरुकुल पहुंचे थे।
खुमाड़ (सल्ट) के आन्दोलन को गांधी जी ने कुमांऊ की बारदोली की संज्ञा प्रदान की. यही कारण था कि उत्तराखण्ड में स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन स्वतंत्रता प्राप्ति तक अनवरत रूप से जारी रहा. स्वतंत्रता आन्दोलन के दौर में गांधी ने उत्तराखण्ड के हरिद्वार, गुरूकुल कांगड़ी, हल्द्वानी, नैनीताल, ताकुला, भवाली, ताड़ीखेत, अल्मोड़ा, कौसानी, बागेश्वर, काशीपुर, देहरादून व मंसूरी जैसे स्थानों की यात्रा की. उन्होंने वर्ष 1915 से 1946 तक तकरीबन छह बार उत्तराखण्ड की यात्रा की.
जून 1929 में जब गांधी जी का स्वास्थ्य कुछ खराब चल रहा था तो वे पंडित नेहरू के आग्रह पर स्वास्थ्य लाभ करने अहमदाबाद से कुमांऊ की यात्रा पर निकल पड़े. ….. 1929 के सितम्बर में गांधी जी देहरादून व मसूरी की यात्रा पर आये. देहरादून में उन्होंने कन्या गुरूकुल का भ्रमण किया और शहंशाही आश्रम में पीपल का एक पेड़ लगाया. अपनी दूसरी कुमांऊ यात्रा के दौरान वे 18 जून 1931 को वे शिमला से नैनीताल पंहुचे. जहां वे 5 दिन के प्रवास पर रहे और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और अलग अलग जमीदारों से देश की समस्याओं पर चर्चा की…… इस दौरान वे गवर्नर सर् मालकम हेली से भी मिले……
उत्तराखंड में रहते हुए उन दिनों बापू कई सार्वजनिक सभाओं में भी शामिल हुए ….
मई 1946 में वे पुनः मसूरी आये और वहां 8 दिन तक रहे. इस दौरान उन्होंने वहां कई प्रार्थना सभाओं व सार्वजनिक सभाओं में शामिल होकर गरीबों के लिए चन्दा एकत्रित करने का कार्य किया. उत्तराखण्ड की इन यात्राओं में गांधी जी के साथ अलग-अलग स्थानों में कई महत्वपूर्ण व्यक्ति साथ रहे जिनमें माता कस्तूरबा, मीरा बहन, खुर्सीद बहन, नेहरू, आचार्य कृपलानी, देवदास व प्रभुदास गांधी, प्यारे लाल, शान्ति लाल त्रिवेदी, महावीर त्यागी, स्वामी श्रद्धानन्द, आचार्य रामदेव, विक्टर मोहन जोशी, देवकी नन्दन पाण्डे व गोविन्द लाल साह जैसे कई प्रमुख व्यक्ति थे.
देहरादून और मसूरी तो जैसे बापू के लिए घर जैसा ही था क्योंकि अपने लंबे संघर्षों के दौरान महात्मा ने अनगिनत बार पहाड़ का रुख किया था….स्वाधीनता आंदोलन पर किताबे लिखनेवाले कलमकार कहते हैं कि उत्तराखण्ड के स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन के नायकों में महात्मा गांधी की भूमिका बेहद अहम थी …..
ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ देेश भर में आज़ादी की अलख जगाने यूँँ तो महात्मा गांधी देेेश भर में दौरे किया करते थे लेकिन उत्तराखंड के तमाम शहरों से उनका जुड़ाव बराबर बना रहा था…जानकार बताते हैं की उत्तराखण्ड में ही उनको पहली बार महात्मा की उपाधि दी गयी थी उत्तराखंड दौरे पर जब जब महात्मा गांधी पहाड़ आये उन्होंने सार्वजनिक सभाओ और मीटिंगों में पहाड़ की गरीबी, खादी प्रचार व आत्मस्वावलंबन पर अपने विचारों से लोगों को काफी प्रभाविअपील की थी जिसका व्यापक असर भी देखने को मिला था ….
देहरादून के ओल्ड मसूरी रोड पर बापू का रोपा गया पेड़ आज भी उनकी यादों का गवाह बनकर खड़ा है