Monday, April 29, 2024
अंतरराष्ट्रीय

कोह-ए-नूर का मसूरी से है संबंध, महाराजा रणजीत सिंह से जुड़ा है इतिहास

ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय का बीती 8 सितंबर को 96 साल की उम्र में निधन हो गया था। अब एलिजाबेथ का कीमती कोहिनूर हीरे से जड़ा मुकुट यानी क्राउन अगली पीढ़ी के पास चला जाएगा। महारानी की मौत के बाद कोहिनूर हीरा फिर एक बार चर्चाओं में आ गया है। साथ ही कोहिनूर हीरे को भारत लाने की मांग भी उठने लगी है। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि इस बेशकीमती हीरे का मसूरी से भी नाता रहा है। क्योंकि कोहिनूर हीरे के असली मालिक महाराजा रणजीत सिंह का मसूरी में इतिहास छुपा हुआ है। अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह की संपत्ति और धन दौलत पर कब्जा कर लिया था। अंग्रेज चाहते थे कि महाराजा दलीप सिंह यानी रणजीत के बेटे को लाहौर से दूर रखा जाए। लिहाजा अंग्रेजों ने महाराजा दलीप सिंह, उनकी मां, उनके चचेरे भाई नौनिहाल सिंह को साल 1852 से 1853 तक मसूरी में रखा गया था। बता दें कि मसूरी अंग्रेजों द्वारा बसाई गई थी। जिसके तहत अंग्रेजों ने मसूरी के मेडक स्कूल (वर्तमान में होटल सवाय में दलीप सिंह को शिक्षा दी। जहां दलीप सिंह को ईसाई समुदाय के बारे में पढ़ाया गया। क्योंकि, अंग्रेज दलीप सिंह को ईसाई बनाना चाहते थे। जिसमें वे सफल भी हुए। कोहिनूर को दुनिया के सबसे कीमती हीरे के रूप में जाना जाता है. मूल रूप में ये 793 कैरेट का था. अब यह 105.6 कैरेट का रह गया है. जिसका वजन 21.6 ग्राम है. यह हीरा भारत में 14वीं सदी में मिला था. जो आंध्र प्रदेश के गुंटूर में काकतीय राजवंश के शासनकाल में गोलकोंडा खनन क्षेत्र में मिला था. तब ये मालवा के राजा महलाक देव की संपत्ति में शामिल था। वारंगल में एक हिंदू मंदिर में इसे देवता की एक आंख के रूप में इस्तेमाल किया गया था, यहां मुगलों ने इसे लूट लिया। जिसके बाद ये हीरा मुगलों के पास ही रहा। मुगल साम्राज्य के कई शासकों को सौंपे जाने के बाद सिख महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर से कोहिनूर हीरे को हासिल कर लिया। जिसे वे पंजाब लेकर आए थे।

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