Wednesday, October 16, 2024
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Kargil Vijay Diwas: 22वीं सालगिरह पर देश ने वीर जवानो की शहादत को किया याद

हर साल 26 जुलाई को कारगिल युद्ध में हासिल जीत का एक और साल पूरा होने पर देश भर में कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है… कारगिल युद्ध 1999 में हुई वीर जवानों की सहादत को याद करने के लिए आज पुरे भारत में कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। दरअसल, लड़ाई की शुरुआत उस समय हुई जब पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की. घुसपैठियों ने खुद को प्रमुख स्थानों पर तैनात किया, जिससे उन्हें संघर्ष की शुरुआत के दौरान रणनीतिक तौर पर लाभ भी मिला स्थानीय चरवाहों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर भारतीय सेना ने घुसपैठ वाले सभी स्थानों का पता लगाया और फिर ‘ऑपरेशन विजय’ की शुरुआत की गई…. शुरुआत में बेशक अधिक ऊंचाई पर होने के कारण पाकिस्तान की सेना को फायदा मिल रहा था लेकिन इससे भी भारतीय सैनिकों का मनोबल कम नहीं हुआ और आखिर में उन्होंने जीत का परचम लहरा दिया. सेना ने फिर 26 जुलाई, 1999 को घोषणा करते हुए बताया कि मिशन सफलतापूर्वक पूरा हो गया है…. उसी दिन के बाद से हर साल कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. हालांकि भारत के लिए ये जीत काफी महंगी भी साबित हुई. आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि भारत के 527 सैनिक शहीद हुए थे, जबकि पाकिस्तान के 357-453 सैनिक मारे गए.

कप्तान विक्रम बत्रा की वीर गाथा……

‘या तो तिरंगा लहरा के आऊंगा, या तो तिरेंगे में लिपटा चला आऊंगा, लेकिन आऊंगा ज़रूर’ … ये आखरी शब्द थे कप्तान विक्रम बत्रा के जो उन्होंने अपने परिवार से कहे थे… 7 जुलाई 1999, एक ऐसी तारीख जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। कैप्टन विक्रम बत्रा ने 24 साल की उम्र में वह ऊंचा मुकाम हासिल किया जिसका सपना हर भारतीय सैनिक देखता है. 13 जम्मू और कश्मीर राइफल्स के कैप्टेन बत्रा ने अपनी जान की परवाह करे बैगर दुश्मनो का सामना किया। सन 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान प्वाइंट 4875 पर कब्ज़ा करने में कप्तान बत्रा ने अहम भूमिका निभाई थी. इससे पहले भी उन्होंने दुश्मनो पर सीधा हमला बोलते हुए 20 जून 1999 के सुबह साढ़े तीन बजे 5140 चोटी को अपने कब्जे में लिया और रेडियो पर अपनी जीत का ऐलान करते हुए कहा – ‘दिल मांगे मोर कहा’

बत्रा की टुकड़ी को इसके बाद 4875 की चोटी पर कब्जा करने की जिम्मेदारी मिली. इस संकरी चोटी पर पाक सैनिकों ने मजबूत नाकेबंदी कर रखी थी. कैप्टन बत्रा ने इस बार भी वही रणनीति अपना कर उस पर जल्दी से अमल में लाने का फैसला लिया. लेकिन इस बार भी अपने काम में सफल तो हुए मगर इस दौरान वे खुद भी बहुत जख्मी हो गए… उन्होंने अपनी टुकड़ी के साथ कई पाकिस्तान सैनिकों को खत्म कर दिया और अपने प्राणों की आहूति दे दी.

कैप्टेन विक्रम चुनौतियों से कभी नहीं डरे, बल्कि हमेशा हस्ते हस्ते उनका सामना करते थे। मातृभूमि के लिए अपना सबकुछ न्योछावर करने से वे कभी नहीं कतराए। इस निडर कारगिल हीरो का जन्म हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था. उन्हें बचपन से ही फ़ौज का जूनून था, कॉलेज क साथ साथ उन्होंने एनसीसी का सी सर्टिफिकेट हासिल किया और दिल्ली में हुई गणतंत्र दिवस की परेड में भी भाग लिया। जिसके बाद उन्होंने सेना में जाने का फैसला कर लिया. उन दिनों बत्रा मर्चेंट नेवी के लिए हॉन्गकॉन्ग की कंपनी में चयनित हुए थे, लेकिन उन्होंने आकर्षक करियर की जगह देशसेवा तो तवज्जो दी.
पढाई खत्म होते ही बत्रा ने सेना का रुख ककर लिया, 1996 में सीडीएस के साथ ही सर्विसेस सिलेक्शन बोर्ड में भी चयनित हुए और इंडियन मिलिट्री एकेडमी से जुड़ने के साथ मानेकशॉ बटालियन का हिस्सा बने. ट्रेनिंग पूरी करने के 2 साल बाद ही उन्हें लड़ाई के मैदान में जाने का मौका मिला था.

कैप्टन बत्रा की बहादुरी के लिए उन्हें ना केवल मरणोपरांत परमवीर चक्र का सम्मान मिला बल्कि 4875 की चोटी को भी विक्रम बत्रा टॉप नाम दिया गया है. वे पालमपुर के दूसरे ऐसे सैनिक हैं जिन्हें परमवीर चक्र मिला है. उनसे पहले मेजर सोमनाथ शर्मा को देश में सबसे पहले परमवीर चक्र प्रदान किया गया था.
कारगिल युद्ध के हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा की आज 22 वीं पुण्यतिथि है। सबसे पहले उन्हें कारगिल के दौरान पाकिस्तान सेना के इंटरसेप्टेड संदेशों में ‘शेरशाह’ कहा गया और तब से लेकर अबतक वे शेरशाह के नाम से भी जाने जाते हैं। यहीं नहीं, करन जोहर खुद कैप्टेन विक्रम बत्रा पर एक फिल्म बना रहे हैं, जिसका नाम ‘शेरशाह’ है, फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा कप्तान बत्रा के किरदार में नज़र आएंगे। शेरशाह को लेकर लोगों में उत्सुकता है, और अब लोगों की नज़रें इस फिल्म पर टिकीं है, की कब ये फिल्म के रिलीज़ हो, और कब उनका इंतज़ार खत्म हो ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद सहित कई दिग्गजों ने भारत के जवानों के बलिदान को याद किया

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