Saturday, April 20, 2024
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खामोश हो गया पहाड़ का सुरीला हीरा – पहाड़ में हिरदा कुमाउँनी की गूंजती रहेगी स्वरलहरी  

लोकप्रिय गायक और कुमायूनी संस्कृति को सुरों में ढालने वाले हीरा सिंह राणा नहीं रहे। पहाड़ का दर्द , पहाड की परम्पराएं और पहाड़ी ज़िंदगी को बेहद प्रभावशाली ढंग से मंच पर प्रस्तुत करने वाले 77 साल के इस सरस्वती पुत्र का जाना न सिर्फ उत्तराखंड के लिए बल्कि देश विदेश में पहाड़ की फ़िक्र करने वाले प्रवासी उत्तराखंडियों के लिए बहुत बड़ा सांस्कृतिक नुक्सान है। बीते दिनों इन्हे दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में गठित कुमाऊनी, गढ़वाली और जौनसारी भाषा अकादमी के उपाध्यक्ष पद पर बिठा कर सम्मान भी दिया था।

 अनगिनत यादगार नग्में और फोक सांग देने वाले हीरा सिंह राणा का जन्म 16 सितंबर 1942 को उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल के ग्राम-मानिला डंढ़ोली, जिला अल्मोड़ा में हुआ था। हिरा सिंह राणा जी की शुरूआती शिक्षा मानिला से ही हुयी थी और उसके बाद वे दिल्ली मैं नौकरी करने लगे…..

जानकार बताते हैं कि जब इस कलाकार का मन नौकरी में नहीं लगा  तो इन्होंने संगीत की स्कालरशिप लेकर कलकत्ता का रुख कर लिया और फिर एक ऐसा सफर शुरू हुआ जो उनकी मृत्यु तक जारी रहा। उत्तराखंड में कुमाऊनी संगीत की सेवा करने वाले इस लोक गायक के अचानक चले जाने से उनके मित्रों और प्रशंसकों में बेहद दुःख है ख़ास कर उत्तराखंड के मशहूर गायक नरेंद्र सिंह नेगी और प्रीतम भरतवाण ने भी लोकगायक हीरा सिंह राणा की मृत्यु को व्यक्तिगत क्षति बताई है।

अपने लम्बे संगीत के इस सफर में कैसेट संगीत के युग के दौरान हीरा सिंह राणा के कुमाउनी लोक गीतों के अल्बम रंगीली बिंदी, रंगदार मुखड़ी, सौमनो की चोरा, ढाई विसी बरस हाई कमाला, आहा रे ज़माना जबर्दस्त हिट रहे हैं। उनके लोकगीत ‘रंगीली बिंदी घाघरी काई,’ ‘के संध्या झूली रे,’ ‘आजकल है रे ज्वाना,’ ‘के भलो मान्यो छ हो,’ ‘आ लिली बाकरी लिली,’ ‘मेरी मानिला डानी,’ कुमाऊनी के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में शुमार हैं…… हीरा सिंह राणा को उनके ठेठ पहाड़ी विम्बों-प्रतीकों वाले गीतों के लिए जाना जाता है. वे लम्बे समय से अस्वस्थ होने के बावजूद कुमाऊनी लोकसंगीत की बेहतरी के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे थे……

 हीरा सिंह राणा के निधन से उत्तराखण्ड के संगीत जगत को अपूरणीय क्षति पहुंची है….. आज भले ही हमारे बीच ये शानदार शख़्सियत जीवित नहीं है लेकिन इनके गए गीत लम्बे समय तक वादियों में गूंजते रहेंगे   

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