पर्यावरण संरक्षण कठिन जरूर पर नामुमकिन नहीं, आगरा की स्थिति भी जान लें
कोरोना वायरस की चैन ब्रेक करने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के दौरान भले ही आर्थिक गतिविधियांं ठप थीं, लोग घरों में कैद थे लेकिन प्रकृति खुलकर सांस ले रही थी। कंकरीट के जंगलों का शोर थमा तो पर्यावरण चहकने लगा। लाॅकडाउन के दौरान पर्यावरण सुधार की उम्मीदें पल रही थी। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण मे सुधार के साथ-साथ वन्य जीव जंतुओं के अनुकूल पर्यावरण में सुधार के संकेत मिल रहे थे। लेकिन अनलॉक होते ही प्रदूषण बेकाबू होने लगा है।
पर्यावरणविद और बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसायटी के अध्यक्ष डॉ केपी सिंह के अनुसार पर्यावरण के अंतर्गत पेड़ों का महत्वपूर्ण योगदान वायु प्रदूषण के नियंत्रण में होता है। भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2019 के अनुसार भारतीय वनों व वृक्षावरण क्षेत्र में कुल 5186 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है। यह वृद्धि केवल 0.65 प्रतिशत है।
लेकिन कार्बन स्टाक में 21.3 मिलियन टन की वृद्धि भी हुई है। जो कि गंभीर चुनौती है। प्रदेश में भी पर्यावरण सुधार अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। पिछले दो वर्षों में वृक्षावरण क्षेत्र में 100 वर्ग किमी व सघन वन क्षेत्र में 0.57 वर्ग किमी की कमी आई है। लेकिन वनक्षेत्र में 126.65 वर्ग किमी, घना वन 11.04 वर्ग किमी व खुले वनक्षेत्र में 116.8 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है। जो कि आबादी के हिसाब से बहुत मामूली वृद्धि दर है।