Home उत्तराखंड सीएम धामी की बड़ी घोषणा, लोकपर्व इगास पर उत्तराखंड में राजकीय अवकाश

सीएम धामी की बड़ी घोषणा, लोकपर्व इगास पर उत्तराखंड में राजकीय अवकाश

सीएम धामी ने उत्तराखंड के लोकपर्व इगास पर राजकीय अवकाश की घोषणा कर दी है.. हरिद्वार में एक कार्यक्रम में सीएम ने इसकी घोषणा की। हालांकि इस दिन रविवार है, इसलिए सार्वजनिक अवकाश सोमवार यानि 15 नवम्बर को घोषित किया गया है। बैंकों/कोषागारों/उपकोषागारों को छोड़कर पूरे उत्तराखंड में छुट्टी होगी। सीएम ने गढ़वाली में ट्वीट करते हुए छुट्टी के फैसले की जानकारी दी.. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा- ‘उत्तराखण्ड की समृद्ध लोकसंस्कृति कु प्रतीक लोकपर्व ‘इगास’ पर अब छुट्टी रालि। हमारू उद्देश्य च कि हम सब्बि ये त्योहार तै बड़ा धूमधाम सै मनौ, अर हमारि नई पीढी भी हमारा पारंपरिक त्यौहारों से जुणि रौ। दूसरी तरफ, सीएम के फैसले का विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का आभार व्यक्त करते हुए इसे सराहनीय पहल बताया है।’

क्यों मनाई जाती है इगास बग्वाल
इसके बारे में कई लोकविश्वास, मान्यताएं, किंवदंतिया प्रचलित है. एक मान्यता के अनुसार गढ़वाल में भगवान राम के अयोध्या लौटने की सूचना 11 दिन बाद मिली थी. इसलिए यहां पर ग्यारह दिन बाद यह दीवाली मनाई जाती है. रिख बग्वाल मनाए जाने के पीछे भी एक विश्वास यह भी प्रचलित है कि उन इलाकों में राम के अयोध्या लौटने की सूचना एक महीने बाद मिली थी. दूसरी मान्यता के अनुसार दिवाली के समय गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट, तिब्बत का युद्ध जीतकर विजय प्राप्त की थी और दिवाली के ठीक ग्यारहवें दिन गढ़वाल सेना अपने घर पहुंची थी. युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में उस समय दिवाली मनाई थी। रिख बग्वाल के बारे में भी यही कहा जाता है कि सेना एक महीने बाद पहुंची और तब बग्वाल मनाई गई और इसके बाद यह परम्परा ही चल पड़ी. ऐसा भी कहा जाता है कि बड़ी दीवाली के अवसर पर किसी क्षेत्र का कोई व्यक्ति भैला बनाने के लिए लकड़ी लेने जंगल गया लेकिन उस दिन वापस नहीं आया इसलिए ग्रामीणों ने दीपावली नहीं मनाई. ग्यारह दिन बाद जब वो व्यक्ति वापस लौटा तो तब दीपावली मनाई और भैला खेला।
हिंदू परम्पराओं और विश्वासों की बात करें तो इगास बग्वाल की एकादशी को देव प्रबोधनी एकादशी कहा गया है. इसे ग्यारस का त्यौहार और देवउठनी ग्यारस या देवउठनी एकादशी के नाम से भी जानते हैं. पौराणिक कथा है कि शंखासुर नाम का एक राक्षस था. उसका तीनो लोकों में आतंक था. देवतागण उसके भय से विष्णु के पास गए और राक्षस से मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना की. विष्णु ने शंखासुर से युद्ध किया. युद्ध बड़े लम्बे समय तक चला. अंत में भगवान विष्णु ने शंखासुर को मार डाला. इस लम्बे युद्ध के बाद भगवान विष्णु काफी थक गए थे. क्षीर सागर में चार माह के शयन के बाद कार्तिक शुक्ल की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु निंद्रा से जागे. देवताओं ने इस अवसर पर भगवान विष्णु की पूजा की. इस कारण इसे देवउठनी एकादशी कहा गया।

भैलो खेल होता है मुख्य आकर्षण का केंद्र
ईगास-बग्वाल के दिन आतिशबाजी के बजाय भैलो खेलने की परंपरा है। खासकर बड़ी बग्वाल के दिन यह मुख्य आकर्षण का केंद्र होता है। बग्वाल वाले दिन भैलो खेलने की परंपरा पहाड़ में सदियों पुरानी है। भैलो को चीड़ की लकड़ी और तार या रस्सी से तैयार किया जाता है। रस्सी में चीड़ की लकड़ियों की छोटी-छोटी गांठ बांधी जाती है। जिसके बाद गांव के ऊंचे स्थान पर पहुंच कर लोग भैलो को आग लगाते हैं। इसे खेलने वाले रस्सी को पकड़कर सावधानीपूर्वक उसे अपने सिर के ऊपर से घुमाते हुए नृत्य करते हैं। इसे ही भैलो खेलना कहा जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी सभी के कष्टों को दूर करने के साथ सुख-समृद्धि देती है। भैलो खेलते हुए कुछ गीत गाने, व्यंग्य-मजाक करने की परंपरा भी है।

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