Friday, April 19, 2024
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BOLLYWOOD – फिल्मकार  अहमद खान की बायोपिक में टाइगर श्रॉफ बनेंगे नैन सिंह रावत – तैयारी शुरू 

रुपहले परदे पर बहुत संभव है कि उत्तराखंड की शान और दुनिया में अपनी शानदार कामयाबी से अलग पहचान बनाने वाले घुम्मकड़ खोजी नैन सिंह रावत की बायोपिक फिल्म सामने आएगी। तिब्बत को पैदल नापने और वहां का नक्शा तैयार करने वाले भारत के पहले सर्वेयर नैन सिंह रावतकी कहानी बॉलीवुड में चर्चा बटोर रही है। फ़िल्मी जानकार मान रहे हैं कि पंडित नैन सिंह रावत की कहानी के जरिये अभिनेता टाइगर श्राफ पहली बार बायोपिक डेब्यू कर सकते हैं। निर्देशक अहमद खान ने टाइगर को इस फिल्म के लिए अप्रोच किया है  बताया जा रहा कि टाइगर को भी फिल्म की कहानी काफी पसंद आई है।  हो सकता है कि नवंबर से फिल्म की लोकेशन के लिए तलाश भी शुरू हो  जाएगी।

दरअसल कुछ समय पहले पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने निर्देशक अहमद खान को नैन सिंह रावत के बारे में बताया था। अहमद खान को कहानी काफी पसंद आई और उन्होंने इस पर फिल्म बनाने का निर्णय लिया। बताया जा रहा कि नैन सिंह के परिवार से फिल्म के राइट्स लेने की प्रक्रिया चल रही है। उम्मीद है कि पहाड़ से जुड़ी शख्सियत पर बन रही इस फिल्म की अधिकांश शूटिंग भी उत्तराखंड में ही होगी।

नैन सिंह रावत का जन्म पिथौरागढ़ जिले की मुनस्यारी तहसील के मिलम गांव में हुआ था। पिता का हाथ बंटाने के लिए नैन सिंह ने बचपन से व्यापार के लिए उनके साथ तिब्बत जाना शुरू कर दिया था। वह दुनिया के पहले ऐसे मानचित्रकार एवं सर्वेयर कहे जाते हैं, जिन्होंने दुनिया को तिब्बत का भूगोल बताया। उन्होंने दुनिया में सबसे पहले ल्हासा की समुद्रतल से ऊंचाई नापी। साथ ही ल्हासा के अक्षांश और देशांतर की भी गणना की। उनकी उपलब्धि पर डाक विभाग ने 139 साल बाद 27 जून 2004 को डाक टिकट जारी किया था। 

घूमने के शौकीन थे नैन सिंह

ब्रिटिश भारत के दौरान अंग्रेजों ने गुप्त रूप से तिब्बत और रूस के दक्षिणी भाग के सर्वेक्षण की योजना बनाई। इस कार्य के लिए नैन सिंह का नाम सुझाया गया। अंग्रेजों ने उन्हें नाप-जोख का कार्य सौंपा। उन्हें ब्रह्मपुत्र घाटी से लेकर यारकंद इलाके तक की नाप-जोख करनी थी। इस अभियान में उनके भाई किशन सिंह रावत के अलावा पांच अन्य लोग शामिल किए गए। 

तिब्बती लामा का वेश किया था धारण 

गुप्त रूप से होने वाले तिब्बत के सर्वे के लिए नैन सिंह ने तिब्बती लामा का वेश धारण किया। उपकरणों के अभाव में तिब्बत को नापने के लिए उन्होंने अनूठा तरीका अपनाया। उन्होंनेपैरों में 33 इंच की रस्सी बांधी, ताकि उनके कदम एक निश्चित दूरी पर ही पड़ें। बताया जाता है कि इसके लिए उन्होंने देहरादून में काफी अभ्यास भी किया था। वो अपनी गणनाओं को कविताओं में याद रखते थे।  कुछ प्लान अगर प्लान के मुताबिक़ हुआ तो उत्तराखंड से किसी बड़े शक्श की बायोपिक 70 mm फिल्म में उतारना शानदार प्रयास साबित हो सकेगा। 

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