राज्य सभा सांसद अमर सिंह का लंबी बीमारी के बाद शनिवार को सिंगापुर के एक अस्पताल में निधन हो गया. वे 64 वर्ष के थे.
अमर सिंह की कहानी भारतीय राजनीति में बीते दो दशक के दौरान किसी अमर चित्र कथा की तरह रही. वे एक दौर में समाजवादी पार्टी के सबसे प्रभावशाली नेता रहे, फिर पार्टी से बाहर कर दिये गए जिसके बाद भी उन्होंने ज़ोरदार वापसी की…..
इस दौरान गंभीर बीमारी और राजनीतिक रूप से हाशिए पर चले जाने के चलते वे कुछ समय तक राजनीतिक पटल से ग़ायब ज़रूर हुए लेकिन अपने पुराने रंग को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा.
इसी वजह से यह सवाल हमेशा उठता रहा कि ‘आख़िर अमर सिंह में ऐसा क्या है जिसके चलते मुलायम सिंह का उन पर भरोसा हमेशा बना रहा?’
मुलायम सिंह अमर सिंह पर बहुत भरोसा करते थे. राजनीति में जिस तरह की ज़रूरतें रहती हैं, चाहे वो संसाधन जुटाने की बात हो या जोड़ तोड़ यानी नेटवर्किंग का मसला हो, उन सबको देखते हुए वे अमर सिंह को पार्टी के लिए उपयुक्त मानते थे. ये बात अपनी जगह बिल्कुल सही है कि अमर सिंह ‘नेटवर्किंग के बादशाह’ आदमी थे.”
समाजवादी पार्टी में वापसी से पहले क़रीब छह साल तक अमर सिंह सक्रिय राजनीति से दूर रहे….
उस समय वे गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे. हालांकि उस दौर में उन्होंने अपने लिए दूसरे दरवाज़े भी देखे. ख़ुद की राजनीतिक पार्टी भी बनाई लेकिन राष्ट्रीय लोक मंच के उम्मीदवारों की 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान ज़मानत ज़ब्त हो गई.
2014 में वे राष्ट्रीय लोक दल से लोकसभा का चुनाव लड़े, पर बुरी तरह हारे…..
इतना ही नहीं, उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने की भी ख़ूब कोशिश की, लेकिन कहीं उनकी दाल नहीं गली और आख़िर में उन्हें ठिकाना उसी पार्टी में मिला जिसके रंग ढंग को अमर सिंह ने बदल दिया था….
चाहे वो जया प्रदा को सांसद बनाना हो, या फिर जया बच्चन को राज्य सभा पहुँचाना हो, या फिर संजय दत्त को पार्टी में शामिल करवाना रहा हो, ये सब अमर सिंह का करिश्मा था. उन्होंने उत्तर प्रदेश के लिए शीर्ष कारोबारियों को एक मंच पर लाने का भी प्रयास किया.