रेडियोएक्टिव पानी को समुद्र में छोड़ेगा जापान, पड़ोसी देशो में मचा बवाल
-आकांक्षा थापा
फुकुशिमा परमाणु प्लांट के दूषित जल को प्रशांत महासागर में बहाने के जापान सरकार के फैसले से इस क्षेत्र के देशों में गहरी चिंता पैदा हो गई है। चीन और दक्षिण कोरिया ने इस पर अपना विरोध खुल कर जताया है। इन देशों को एतराज इस बात पर भी है कि जापान ने ये फैसला एकतरफा ढंग से ले लिया। इस मामले में आसपास के देशों को भरोसे में लिया गया, जबकि इसका बुरा असर उन सभी देशों पर पड़ेगा। पहले 2011 में आए भूकंप और सुनामी के कारण फुकुशिमा परमाणु संयंत्र नष्ट हो गया था। दक्षिण कोरिया और चीन जैसे तटीय देशों पर इसका सीधा खराब असर पड़ सकता है।
दूषित पानी को समुद्र में छोड़े जाने का फैसला जापानी कैबिनेट मंत्रियों की बैठक में लिया गया। जापानी कैबिनेट मंत्रियों द्वारा पानी को महासागर में छोड़ा जाना ही बेहतर विकल्प बताया जा रहा है। प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा बोले कि महासागर में पानी छोड़ा जाना सबसे व्यावहारिक विकल्प है। उन्होंने यह भी कहा कि फुकुशिमा संयंत्र को बंद करने के लिए पानी का निस्तारण अपरिहार्य है, जिसमें कई दशक का वक्त लगने का अनुमान है।
बता दें, साल 2011 में जापान में आए भीषण भूकंप के कारण फुकुशिमा के न्यूक्लियर पावर प्लांट को भारी नुकसान पहुंचा था। इसी के बाद इस प्लांट का कूलिंग वाटर रेडियोएक्टिव पदार्थों के मिलने से दूषित हो गया था। तबसे ही जापानी सरकार ने इस पानी को फुकुशिमा दाइची संयंत्र में टंकियों में स्टोर करके रखा हुआ है। अब इस प्लांट का संचालन करने वाली तोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन (तेपको) ने कहा कि अगले साल के अंत तक इसकी भंडारण क्षमता पूर्ण हो जाएगी। तोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन और सरकार के अधिकारियों ने कहा कि ट्रिटियम को पानी से अलग नहीं किया जा सकता है जो कम मात्रा में हानिकारक नहीं होता है लेकिन अन्य सभी चयनित रेडियोन्यूक्लाइड्स का स्तर इतना कम किया जा सकता है कि वे पानी में छोड़ने लायक बन जाएं। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि पानी की इतनी अधिक मात्रा से कम खुराक के संपर्क में आने से समुद्री जीवन पर पड़ने वाले दीर्घकालिक प्रभाव के बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है।