अजब-गजबः उत्तराखण्ड के दिलचस्प सियासी मिथक, सरकार बनाने के लिये इस सीट को जीतना जरूरी, और इस सीट को हारना
देहरादून- सियासत और मिथक का गहरा संबंध रहा है। ऐसा नहीं है कि देश की राजनीति में मिथक टूटे नहीं हैं मगर आज भी ऐसे कई मिथक हैं जो अटूट बने हुये हैं। और चुनाव के वक्त ये सियासी मिथक राजनीतिक दलों के नेताओं के लिये किसी फोबिया से कम नहीं हैं। उत्तराखण्ड में भी कुछ ऐसे मिथक हैं, जो अब तक टूट नहीं पाए हैं। हर विधानसभा चुनाव में सियासी दलों के नेता मिथक टूटने का दावा करते है लेकिन ये मिथक जस के तस हैं। एक सरकार के दोबारा वापसी ना कर पाने का चर्चित किस्सा तो हर चुनाव की सुर्खियों में रहता ही है लेकिन शिक्षा मंत्री और गंगोत्री-चम्पावत सीट को लेकर भी कुछ ऐसा ही है। उत्तराखंड राज्य का जबसे गठन हुआ है तब से जो विधायक शिक्षा मंत्री की कुर्सी पर बैठा है वो जीत नहीं पाया। सूबे में अब तक 6 शिक्षा मंत्री बने हैं लेकिन कोई भी शिक्षा मंत्री अगली दफा चुनाव जीतकर विधानसभा नहीं पहुंच पाया है। वहीं, गंगोत्री और चम्पावत सीट की बात करें तो जो विधायक यहां से चुनकर आता है उसी की पार्टी सत्ता में काबिज होती है। इसी तरह रानीखेत सीट से भी एक दिलचस्प किस्सा जुड़ा है। यहां से जिस पार्टी का विधायक चुना जाता है, उस दल को विपक्ष में बैठना पड़ता है। उत्तराखंड में शिक्षा मंत्री को लेकर एक ऐसी परंपरा बन गई है जो चिर स्थाई सी हो गई है। जब से उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ तब से अब तक शिक्षा मंत्री को लेकर एक मिथक बरकरार है। उत्तराखंड में जो भी विधायक शिक्षा मंत्री बने, वो दोबारा विधानसभा नहीं पहुंच पाए। साल 2000 में भाजपा की अंतरिम सरकार में तीरथ सिंह रावत शिक्षा मंत्री बने, लेकिन 2002 के चुनाव में वो विधानसभा नहीं पहुंच पाए। इसके बाद साल 2002 में एनडी तिवारी सरकार में नरेंद्र सिंह भंडारी मंत्री बने, जो 2007 के विधानसभा चुनाव में हार गए। फिर भाजपा सरकार में शिक्षा मंत्री रहे गोविंद सिंह बिष्ट चुनाव हार गये। इसके बाद कांग्रेस सरकार में शिक्षा मंत्री रहे मंत्री प्रसाद नैथानी चुनाव हार गये। इस बार शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे के सामने इस मिथक को तोड़ने की चुनौती है।
चम्पावत और गंगोत्री का ये है मिथक
उत्तरकाशी जिले के गंगोत्री विधानसभा और चम्पावत सीट को लेकर भी दिलचस्प किस्सा है। यहां से जिस विधायक ने चुनाव जीता उसकी पार्टी की सरकार सत्ता में रही। 2002 और 2012 में कांग्रेस के उम्मीदवारों ने इन दोनों सीटों से जीत दर्ज की थी तब उनकी सरकार सूबे में बनी थी। वहीं, 2007 और 2017 में बीजेपी के खाते में दोनों सीटें गईं तो प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी।
रानीखेत का मिथक भी है दिलचस्प
इसी तरह रानीखेत सीट का भी एक दिलचस्प मिथक है। इस विधानसभा से जिस पार्टी का विधायक चुना जाता है, उसकी पार्टी को सत्ता नसीब नहीं होती। 2002 और 2012 में इस सीट पर बीजेपी जीती तो सरकार कांग्रेस की बनी। जबकि 2007 और 2017 में कांग्रेस जीती तो सरकार भाजपा ने बनाई। इस बार भाजपा कांग्रेस की नजर रानीखेत में भी रहने वाली।
एक बार भाजपा एक बार कांग्रेस का भी है मिथक
2002 से 2007 तक कांग्रेस सत्ता में रही। फिर 2007 में सत्ता परिवर्तन हुआ तो बीजेपी की सरकार बनी। 2012 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और दो मुख्यमंत्री दिए। मुख्यमंत्री रहते चुनाव लड़ने वाला दल अब तक सत्ता में दोबारा वापसी नहीं कर पाया है। हर विधानसभा चुनाव में जनता ने सत्ता बदली है। ऐसे में देखना होगा कि इस बार कितने मिथक टूटते हैं और कितने अटूट रहने वाले हैं।