Monday, April 29, 2024
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देश में मुस्लिम सियासत और लीडरशिप में सबसे बड़ा नाम हैं – “नसीमुद्दीन सिद्दीकी”

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश को अपनी कर्मभूमि मान कर मज़लूमों और कमज़ोरों का सहारा बनने वाले दिग्गज सियासतदां की विधान परिषद् की मेम्बरशिप अब ख़त्म हो गयी है लेकिन बहुजन समाज पार्टी की जन विरोधी नीतियों पर अपना मुखर विरोध जताने वाले इस लोकप्रिय जननेता ने भटक चुके हाथी को छोड़कर हाँथ का साथ थाम लिया ….. 

बहुजन समाज पार्टी ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी को दल-बदल कानून के तहत 22 फरवरी 2018 से अयोग्य घोषित किया गया है। उनके कांग्रेस में शामिल होने के बाद बहुजन समाज पार्टी ने दल-बदल कानून के तहत उन्हें अयोग्य ठहराने के लिये विधान परिषद में याचिका दी थी। लंबी सुनवाई के बाद विधान परिषद के सभापति ने अब अपना बड़ा निर्णय दिया है और नसीमुद्दीन सिद्दीकी को विधान परिषद की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया है लेकिन सियासत के राष्ट्रीय फलक पर बैठे नसीमुद्दीन सिद्दीकी के लिए राहत भरी खबर से ज्यादा कुछ साबित नहीं हुयी है क्यूंकि अब देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के मिशन को अपने लम्बे अनुभव से नयी ऊंचाईयों पर ले जा रहे हैं जिसमें उनके साथ उनके बेटे और युवाओं में नयी उम्मीद बन चुके अफजल सिद्दीकी कदम से कदम मिला कर आगे बढ़ रहे हैं।

आइये आपको बताते हैं कि संघर्ष से शिखर तक नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कैसे अपने ज़िंदगी को  मुल्क  वक़्फ़ कर दिया …  उत्तर प्रदेश सरकार में कई बार नसीमुद्दीन सिद्दीकी बड़े मंत्रालय की ज़िम्मेदारी सम्हाल चुके हैं … मूलरूप से बांदा के स्योंढ़ा गांव के बाशिंदे कोंग्रेसी लीडर सिद्दीकी के बारे में बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि ये राष्ट्रीय स्तर पर वॉलीबाल खिलाड़ी भी रहे हैं। उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत 1988 में बांदा नगर पालिका अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ने से हुई यही से उन्होंने बसपा का झंडा थाम लिया और 1991 में बसपा के टिकट से बांदा सदर सीट से विधायक चुने गए। बांदा के इतिहास में पहली बार कोई मुस्लिम विधायक हुआ।

1995 में मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनीं तो उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया। इसके बाद दूसरी बार 21 मार्च से 21 सितंबर 1997 तक मायावती सरकार में मंत्री रहे। तीसरी बार 3 मई 2002 से 29 अगस्त 2003 तक माया सरकार में मंत्री रहे। इसके बाद 13 मई 2007 से 7 मार्च 2012 तक मायावती सरकार में एक दर्जन से ज्यादा विभागों के कैबिनेट मंत्री रहे। वह बसपा के राष्ट्रीय महासचिव और यूपी, उत्तराखंड और दिल्ली आदि के प्रभारी भी रहे। लेकिन ये विडंबना ही है कि दो दशक से विधान परिषद सदस्य रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी को अपनी मुखर छवि और जन विरोधी नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाने का खामियाज़ा अपनी सदस्य्ता खो कर भुगतना पड़ा है।

लेकिन जिनका लक्ष्य बड़ा होता है उनके रास्ते में ये बाधाएं बहुत छोटी साबित होती हैं। आपको यहां ये भी बता दें की हिंदुस्तान की सक्रिय सियासत के दिग्गज महारथी नसीमुद्दीन के अपने संघर्षमय जीवन के शुरूआत एक रेलवे ठेकेदार के रूप में हुयी थी जहाँ से कामयाबी और लोकप्रियता की सीढ़ियां चढ़ते चढ़ते आज नसीमुद्दीन सिद्दीकी राष्ट्रीय फलक पर अपनी साख को बुलंदी की और ले जा रहे हैं।  

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