शारदीय नवरात्रि 2021 : माँ दुर्गा का छठा स्वरुप है माता कात्यायनी, आज ऐसे करें इनकी पूजा
नवरात्रि के नौ स्वरुप में से छठा रूप हैं माता कात्यायनी। इस साल षष्ठी की तिथि आज 11 अक्टूबर को है, इस दिन माता कात्यायनी की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है की इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है और भक्तों के रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। साथ ही, जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इनका स्वरूप अत्यन्त भव्य और दिव्य है। चारों भुजाओ के साथ दायीं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। माँ के बाँयी तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। इनका वाहन भी सिंह है।
माता कात्यायनी की कहानी
कुछ ग्रंथों में यह उल्लेख किया गया है कि कात्य गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती की उपासना और कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि उन्हें एक देवी स्वरुप पुत्री प्राप्त हो। मां भगवती ने उनके घर एक पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए यह देवी कात्यायनी कहलाईं। पौराणिक कथा के अनुसार मां कात्यायनी ने महिषासुर, शुम्भ और निशुम्भ का वध कर नौ ग्रहों को उनकी कैद से छुड़ाया था। ऐसा माना जाता हैं कि भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी। यह पूजा कालिन्दी यमुना के तट पर की गई थी।
मां कात्यायनी की पूजा का महत्व
ऐसा कहा जाता है कि देवी कात्यायनी की कृपा उपासकों के पापों को धोने और बाधाओं को दूर करने वाली नकारात्मक शक्तियों को दूर करने में मदद करती है। कहा जाता है कि उनकी पूजा करने से भक्तों के ‘मांगलिक दोष’ में मदद मिलती है। अविवाहित लड़कियां भी इस दिन अपनी पसंद का पति पाने की उम्मीद में व्रत रखती हैं। मां कात्यायनी की साधना का समय गोधूली काल है। इस समय में धूप, दीप से मां की पूजा करने से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं। देवी को शहद और प्रसाद चढ़ाया जाता है और पूजा के समय कमल का पुष्प भी चढ़ाया जाना शुभ मन जाता है।
पूजा मंत्र
ॐ देवी कात्यायनयै नमः
चंद्रहासोज्वलकर शार्दुलावरवाहन।
कात्यायनी शुभम ददयाद देवी दानवघाटिनी
या देवी सर्वभूटेशु माँ कात्यायनी रूपेना संस्था।
नमस्तास्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः