Monday, April 29, 2024
उत्तराखंड

देवभूमि से रूठ गई बेटियां, पंजाब-हरियाणा से भी नीचे पहुंचा उत्तराखण्ड का चाइल्ड सेक्स रेश्यो

देहरादून– नीति आयोग की हालिया सीडीजी रिपोर्ट के मुताबिक जन्म के समय लिंगानुपात के मामले में उत्तराखण्ड के हालात देश में सबसे बदतर हो गये हैं। उत्तराखण्ड में बालिका जन्मदर बेहद नीचे पहुंच चुकी है और राज्य लिंगानुपात के मामले में सबसे पिछड़ा राज्य बन चुका है। बड़ा सवाल है कि आखिर देवभूमि से बेटियां रूठ गई हैं या कोख में बेटियों की हत्या का सिलसिला अभी जारी है।
एसडीजी के आंकड़ों के हिसाब से उत्तराखण्ड में बालक-बालिका लिंगानुपात का औसत 840 पहुंच चुका है। यानी राज्य में प्रति 1000 बालकों पर सिर्फ 840 बालिकाएं जन्म ले रही हैं। बालिका जन्मदर के मामले में सबसे पिछड़े पंजाब-हरियाणा जैसे राज्य भी उत्तराखण्ड से आगे निकल चुके हैं। देवभूमि उत्तराखण्ड के लिये इससे भी चिंताजनक बात यह है कि पिछले 10 सालों में राज्य का लिंगानुपात 890 से गिरकर 840 पहुंच चुका है। यानी इन दस सालों में बच्चों का लिंगानुपात 50 अंग नीचे चला गया है।
तीन साल पहले उत्तराखण्ड के उत्तकाशी जिले से एक चैंका देने वाली खबर सामने आई थी। 2018 में यह पता चला था कि उत्तरकाशी जिले के तीन विकासखण्डों में 6 माह के दौरान एक भी बेटी ने जन्म नहीं लिया। इस दौरान केवल बेटे ही बेटे पैदा हुये थे। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक जिले के भटवाड़ी, डुंडा और चिन्यालीसौड ब्लाॅक के 16 गांवों में छह महीने के दौरान एक भी बच्ची नहीं जन्मी। यह खबर देखते ही देखते आग की तरह फैल गई।

आखिर ऐसा कैसे हो सकता था कि इन गांवों में 6 महीनों के भीतर एक भी बेटी ने जन्म नहीं लिया? शक यह जताया गया कि हो न हो इन गांवों में भू्रण लिंग की जांच के बाद बेटियों को कोख में ही मारा जा रहा है। इसी संदेह के आधार पर तत्कालीन जिलाधिकारी आशीष चैहान ने एक जांच टीम का गठन भी किया था।
आज नीति आयोग के आंकड़ों से उत्तराखण्ड में बालिका लिंगानुपात की असल सच्चाई जाहिर हो गई है। सीडीजी के आंकड़ों के मुताबिक शिशु जन्म में लिंगानुपात के मामले में सबसे पिछड़े राज्य के तौर पर उत्तराखंड ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। एसडीजी के आंकड़ों के हिसाब से बालक बालिका लिंगानुपात के मामले में उत्तराखंड में केवल 840 का औसत है। यानी राज्य में प्रति 1000 बालकों पर सिर्फ 840 बालिकाएं जन्मती हैं। एसडीजी के आंकड़े बताते हैं कि शिशु जन्म के समय बाल लिंगानुपात के सबसे बेहतर आंकड़े छत्तीसगढ़ के सामने आये हैं। जहां यह अनुपात 1000-958 रहा है। छत्तीसगढ़ के यह आंकड़े राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा हैं। 957 के अनुपात के साथ केरल इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर है। पंजाब में 890 और हरियाणा में 843 का औसत भी चिंताजनक है। लेकिन पंजाब और हरियाणा पहले से कम बालिका औसत के शिकार थे लेकिन इन राज्यों के आंकड़े इस बार बेहतर हुये हैं। लेकिन उत्तराखंड पिछड़ता चला गया है। 2011 की जनगणना के मुताबिक 6 साल की उम्र तक के बच्चों के मामले में उत्तराखंड में सेक्स रेश्यो 890 का था। यानी पिछले दस साल में यह अनुपात और नीचे गिर चुका है।
“नीति आयोग के आंकड़े हैरान करने वाले हैं, जबकि उत्तराखण्ड ने बालक-बालिका लिंगानुपात में बेहतर काम किया है, राज्य को लिंगानुपात के मामले में कई बार राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार भी दिया जा चुका है। नीति आयोग की रिपोर्ट का अध्ययन किया जाएगा और इस मामले को मुख्यमंत्री के संज्ञान में भी लाया जाएगा” – रेखा आर्य, महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री, उत्तराखण्ड।

 

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