अलविदा पर्यावरण के पुरोधा, विश्वविख्यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का निधन
देहरादून- मशहूर पर्यावरणविद, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व पद्मभूषण सुंदरलाल बहुगुणा का 93 वर्ष की उम्र में आज दोपहर (21 मई) को निधन हो गया। कोरोना संक्रमित होने के कारण उन्हें बीती आठ मई से एम्स ऋषिकेश में भर्ती किया गया था। एम्स के जनसंपर्क अधिकारी हरीश मोहन थपलियाल ने बताया कि उन्हें यहां आईसीयू में लाइफ सपोर्ट में रखा गया था।
उनके रक्त में ऑक्सीजन की परिपूर्णता का स्तर बीती शाम से गिरने लगा था। चिकित्सक विशेषज्ञ उनकी निरंतर स्वास्थ्य संबंधी निगरानी कर रहे थे। शुक्रवार की दोपहर करीब 12 बजे पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा ने अंतिम सांस ली। उनके पुत्र राजीव नयन बहुगुणा एम्स में ही मौजूद है। पर्यावरणविद बहुगुणा का अंतिम संस्कार ऋषिकेश गंगा तट पर आज शाम को पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। एम्स के निदेशक प्रोफेसर रविकांत ने उनके निधन को उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश की अपूरणीय क्षति बताया है। उनके निधन पर देश-विदेश की तमाम बड़ी हस्तियों ने गहर शोक प्रकट किया है। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने पर्यावरणविद् बहुगुणा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त हुए इसे देश की अपूरणीय क्षति बताया है।
सुंदरलाल बहुगुणा न सिर्फ देश बल्कि दुनिया में प्रकृति और पर्यावरण के पुरोधा माने जाते थे। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिये कई कार्यक्रम चलाये। सुंदरलाल बहुगुणा ने 1972 में चिपको आंदोलन को धार दी थी। साथ ही देश-दुनिया को वनों के संरक्षण के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरूप चिपको आंदोलन की गूंज समूची दुनिया में सुनाई पड़ी। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी बहुगुणा का नदियों, वनों व प्रकृति से बेहद गहरा जुड़ाव था। वह पारिस्थितिकी को सबसे बड़ी आर्थिकी मानते थे। यही वजह भी है कि वह उत्तराखंड में बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए छोटी-छोटी परियोजनाओं के पक्षधर थे। इसीलिए वह टिहरी बांध जैसी बड़ी परियोजनाओं के कभी पक्षधर नहीं रहे।
इसे लेकर उन्होंने वृहद आंदोलन भी किये थे। सादा जीवन उच्च विचार को आत्मसात करते हुए वह जीवनपर्यंत प्रकृति, नदियों व वनों के संरक्षण की मुहिम में जुटे रहे। बहुगुणा ही वह शख्स थे जिन्होंने अच्छे और बुरे पौधों में फर्क करना सिखाया। यानी वृक्षारोपण भी ऐसे पौधों का हो जो पर्यावरण और मानव के हितकारी हों। चिपको आन्दोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को उत्तराखंड के श्मरोडा नामक स्थान पर हुआ। प्राथमिक शिक्षा के बाद वे लाहौर चले गए और वहीं से बी.ए. किए।
सन 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आने के बाद ये दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए तथा उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी की। दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ दिया। अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही पर्वतीय नवजीवन मण्डल की स्थापना भी की। सन 1971 में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सुन्दरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
बहुगुणा के चिपको आन्दोलन का घोषवाक्य है-क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार। सुन्दरलाल बहुगुणा के अनुसार पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अति महत्वपूर्ण है। बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में इनको पुरस्कृत भी किया। इसके अलावा उन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। पर्यावरण को स्थाई सम्पति मानने वाला यह महापुरुष आज सबको अलविदा कहकर चला गया है।