आज से शुरू हो रहा है उत्तराखंड का प्रसिद्ध बालपर्व ‘फूलदेई’, बच्चे करते हैं हिन्दू नववर्ष का स्वागत
“चला फुलारी फूलों को…” यह पंक्ति सुनते ही छोटे बच्चों की तस्वीर दिखने लगती है। उत्तराखंड का लोकप्रिय त्योहार फूलदेई आज से शुरु हो रहा है। यह त्योहार मुख्य रुप से छोटे-छोटे बच्चों द्वारा मनाया जाता है। बच्चों द्वारा मनाए जाने के कारण इसे लोक बाल पर्व भी कहते हैं। यह प्रसिद्ध त्योहार चैत्र मास की प्रथम तिथी को संक्रांति के दिन से शुरु होता है। कुमाऊं और गढंवाल में इसे ‘फूलदेई’ और जौनसार में ‘गोगा’ कहा जाता है। बसंत के आगमन के साथ-साथ ही यह त्योहार नई आशाओं का प्रतीक है। इस त्योहार में बच्चे आस-पास के घरों में लोकगीत गाते हुए दहलीजों पर फ्योंली और बुरांश जैसे सुंदर फूल चढ़ाकर उस घर की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। वहीं, इस अवसर पर घर के बड़े लोग बच्चों को चावल, गुड़, चौलाई और दक्षिणा देते हैं। कुछ जगह यह त्योहार एक दिन, कहीं 15 दिन तो कहीं एक महीने तक चलता है।
क्यों मनाई जाती है फूलदेई?
हिन्दू नववर्ष का स्वागत है फूलदेई
मार्च के महीने को हिन्दू कलेंडर में चैत्र कहा जाता है। अपने-अपने कलेंडर के हिसाब से नववर्ष मनाने की परंपरा विश्व की प्रत्येक संस्कृति में रही है। अपने नववर्ष पर तिब्बती लोसर नामक त्योहार मनाते हैं, तो वहीं पारसी नौरोज नामक पर्व मनाते हैं।जहां अंग्रेजी नववर्ष 1 जनवरी से शुरु होता है, वहीं 14 या 15 मार्च से चैत्र महीने के साथ ही हिन्दू नववर्ष की शुरुवात होती है।इस अवसर पर हिंदू धर्म से जुड़े सभी समुदाय उत्सव मनाते हैं। उत्तराखंड,हिमाचल प्रदेश और नेपाल में सौर कलेंडर के अनुसार दिनों की गणना होती है। हिमालयी क्षेत्रों में इस दिन सूर्य अपनी राशि परिवर्तन करते हैं। यहां यह नववर्ष का प्रथम दिन होता है। इस दिन नववर्ष के आगमन की खुशी में साफ-सफाई करके दहलीज पर पुष्प बिछाकर नए साल का स्वागत किया जाता है। आने वाले नववर्ष को और मंगलमय बनाने के लिए देवतुल्य बच्चे घरों की दहलीज पर पुष्पवर्षा करके नववर्ष का स्वागत करते हैं।
प्रकृति और आगामी कृषि की तैयारियों का किया जाता है स्वागत
मार्च के महीने में बसंत ऋतु के आगमन के साथ-साथ मौसम और प्रकृति अपने सबसे सुंदर रुप में होती हैं। वहीं एक कृषि राज्य होने के कारण उत्तराखंड के लोकोत्सवों में इसका प्रमुख स्थान है। बसंत के आगमन पर प्रकृति के स्वागत के साथ-साथ आगामी कृषि की तैयारियां भी शुरु हो जाती हैं। इसे लेकर अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग विधान पाए जाते हैं। उत्तरकाशी में फूल्यात, गढ़वाल में फुलारी, कुमांऊ में फूलदेई के रुप में प्रकृति का स्वागत किया जाता है।
हिमाचल में भी मनाया जाता है मिलता-जुलता त्योहार
नववर्ष के स्वागत पर उत्तराखंड के पडोसी राज्य हिमांचल प्रदेश में भी फूलदेई से मिलता जुलता उत्सव मनाया जाता है। चैत्र के पूरे माह चलने वाला हिमांचल कांगड़ा का रली नामक उत्सव भी फूलदेई के जैसा उत्सव है। इस पर्व में चैत्र संक्रांति के दिन रली अर्थात शंकर और उसके भाई बास्तु की मिट्टी की मूर्तियां बनाई जाती हैं। कुंवारी कन्याएं सुबह छोटी -छोटी टोकरियों में फूल तोड़ कर लाती हैं ,और उन्हें गीत गाते हुए रली वाली दहलीज पर अर्पित करती हैं। चैत्र माह में पड़ने वाले हर सोमवार को व्रत रख कर टोकरी में फूलों के बीच देवी की मूर्ति रखकर बस्ती के हर घर में जाकर मोडली नामक गीत गाती है। उत्तराखंड के फूलदेई त्यौहार की तरह गृहणियां उन्हें गुड़ और चावल देती हैं।