Thursday, May 2, 2024
उत्तराखंडदेहरादून

टपकेश्वर मंदिर में गूंजे शिव के जयकारे, यहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं…

-आकांक्षा थापा

महा शिवरात्रि पर भगवान भोले का जलाभिषेक करने के लिए भक्तो ने सुबह से ही मंदिर आना शुरू कर दिया। महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर दूर-दूर से श्रद्धालु टपकेश्वर मंदिर की ओर खींचे चले आते हैं और कई घंटो कतार में इंतज़ार भी करते हैं। उत्तराखंड के देहरादून स्थित टपकेश्वर मंदिर की बहुत मान्यता है, लोगों की भक्ति की उन्हें यहाँ ले आती है। हर साल शिवरात्रि पर भारी संख्या में लोग आते हैं, यहाँ तक की 2 लाख से भी ज़्यादा लोग यहाँ माथा टेकते हैं। कोरोना के चलते मंदिर में सख्ती से कोविड गाइडलाइन्स का पालन किया गया, इसके लिए पुलिस और मंदिर की टीम को भी तानैत किया गया।
वहीँ, भीड़, गर्मी और लम्बी कतारों को देख कर लोगों का उत्साह काम नहीं हुआ, बल्कि भक्तों ने भोलेनाथ का जयकारा लगाया और भगवान भोले का आशीर्वाद लिया। जलाभिषेक का सिलसिला गुरुवार को दोपहर बाद तक चलता रहेगा। इससे पूर्व मंदिरों और शिवालयों को रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया गया।

टपकेश्वर महादेव मंदिर की इतनी मान्यता क्यों? जानते हैं मंदिर का इतिहास ..

टपकेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास प्राचीन भी है और खास भी। पौराणिक कथा के अनुसार टपकेश्वर मंदिर देवताओं का निवास स्थान है …इस गुफा में सभी देवता भगवान शिवजी का ध्यान लगाया करते थे… जब भगवान शिवजी की देवताओं पर कृपा हुई तो भगवान शिवजी भूमार्ग से प्रकट होकर देवताओं को देवेश्वर के रूप में दर्शन दिए…देवताओं को दर्शन देने के बाद शिवजी ने ऋषियों को दर्शन दिए… इस महान तीर्थस्थल में भगवान शिव ने अनेक बार अद्भुत रूप में दर्शन देकर श्रद्धालुओ व भक्तो का कल्याण किया… टपकेश्वर मंदिर की उपस्तिथि इस स्थान पर अनादी काल से मानी जाती है और यहाँ विराजित शिवलिंग का वर्णन देवेश्वर व टपकेश्वर के नाम से लगभग 6 हज़ार वर्षो से स्कन्दपुराण व केदारखंड में उल्लेखित है..

कहा जाता है की इसी गुफा में गुरु द्रोणाचार्य जी को भगवान शिवजी की तपस्या करने के बाद धनुविद्या का ज्ञान प्राप्त हुआ था एवम् द्रोणाचार्य पुत्र अश्व्थामा ने इसी गुफा में दूध हेतु भगवान शिवजी की मात्र एक पाँव के सहारे खड़े होकर 6 महीने तपस्या की और ये तपस्या पूर्णमासी के दिन पूरी हुई तथा गुफा के अन्दर विराजित शिवलिंग में दूध की धार बहने लगी..

अश्व्थामा ने भगवान शिवजी के चरणों से दूध ग्रहण कर अपनी भूख और प्यास मिटाई.. परिणामस्वरुप भगवान शिवजी ने अश्व्थामा को अजर , अमरता का वरदान प्रदान किया… कलयुग में दूध का गलत इस्तेमाल होने के कारण भगवान शिवजी नाराज़ हो गए और दूध को पानी के रूप में बदल दिया तब से लेकर वर्तमान समय तक गुफा में दूध की बूंदों के स्थान पर जल की बूंदे टपकती है …वर्तमान में भक्त लोग भगवान शिव का जलाभिषेक करके मनोकामना अनुसार फल पाते है…

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