Saturday, September 30, 2023
Home उत्तराखंड अल्मोड़ा इतिहास के पन्ने में दर्ज़ है स्वर्णिम इतिहास - जानिए कैसे बना उत्तराखंड ? 

इतिहास के पन्ने में दर्ज़ है स्वर्णिम इतिहास – जानिए कैसे बना उत्तराखंड ? 

  • लम्बे संघर्ष और जन आंदोलन के बाद मिला पहाड़ को अपना उत्तराखंड
  • अनगिनत शहादत और देहरादून से दिल्ली तक हुआ बेहिसाब आंदोलन
  • 1987 में कर्णप्रयाग से शुरू हुयी थी नए पहाड़ी राज्य की मांग  
  • 1994 में अलग राज्य के लिए तेज़ हुआ युवाओं का धरना प्रदर्शन
  • संयुक्त मोर्चा के झंडे तले 2 अक्टूबर 1994 को दिल्ली में भारी प्रदर्शन हुआ 
  • 27 जुलाई 2000  को उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000 लोकसभा में पेश हुआ 
  •  राष्ट्रपति  ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को 28 अगस्त 2000 को स्वीकृति  दी  
  • 9 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आया नया पहाड़ी राज्य उत्तराखंड  
  • बीसवे स्थापना दिवस पर पहाड़ के लोगों ने जताया गुस्सा 
 
 

 नौजवानों की शहादत का परिणाम है उत्तराखंड ….. पहाड़ के अनगिनत शहीदों के शहादत का कर्ज़दार है उत्तराखंड  …..  आज जय भारत टीवी उन्हीं आंदोलनकारियों को अपनी श्रद्धांजलि समर्पित कर रहा है , जिनके संघर्षों और बलिदान से इस राज्य की नींव पड़ी है। आज लोग बधाई दे रहे हैं उन नौजवानों को जिनके कंधे पर है पहाड़ को संवारने की ज़िम्मेदारी जी हाँ दोस्तों हम सबके लिए आज एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है हमारा प्यारा खूबसूरत राज्य उत्तराखंड .. 

एक करोड़ से थोड़ा ज्यादा ही हैं हम सब उत्तराखंडी लेकिन कई चुनौतियों से हम आज भी लड़ रहे हैं …  आज देश भर में उत्तराखंड को पलायन और बेरोज़गारी के लिए शर्मिंदा होना पड़ता है … स्कूलों में शिक्षक हों या पहाड़ के अस्पतालों में  डॉक्टर्स ये दो जीवन के अहम् आधार कमज़ोर बने हुए हैं।  नदियाँ पहाड़ और जंगल जिनको बचने के लिए हमारे आंदोलनकारी शहीदो ने जान लुटा दी थी आज वही धरोहर माफियाओं के शिकंजे में तड़प रही है ….आइये आपको बताते हैं राज्य आंदोलन का वो इतिहास जिसपर आज हर उत्तराखंडी को गर्व है 

इतिहास के पन्ने में दर्ज़ है स्वर्णिम इतिहास – जानिए उत्तराखंड कैसे बना ? 

जून 1987 में कर्ण प्रयाग के सर्वदलीय सम्मेलन में उत्तर प्रदेश से अलग होकर एक नयी पहचान के साथ अलग उत्तराखण्ड के गठन के लिये पहाड़ के लोगों ने एक बड़ा फैसला किया और तय हुआ कि नवम्बर में ही अलग उत्तराखण्ड राज्य के गठन के लिये देश की राजधानी दिल्ली में हल्लाबोल किया जायेगा ….  यही से शुरू हुआ पहाड़ का आंदोलन    ….. सिलसिला तेज़ हुआ 1994 में ….जब  उत्तराखंड राज्य और आरक्षण को लेकर छात्रों ने सामूहिक रूप से आन्दोलन शुरू किया। इस बीच समाजवादी सरकार के मुलायम सिंह यादव के उत्तराखण्ड विरोधी बयान से आंदोलन की आग तेज़ शोलों में भड़क उठी थी……  आन्दोलन तेज हो चुका था  उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के नेताओं ने पहाड़ से लेकर मैदान तक अनशन प्रदर्शन शुरू कर दिया था उत्तराखण्ड में सरकारी कर्मचारी पृथक् राज्य की मांग के समर्थन में लगातार तीन महीने तक हड़ताल पर रहे तथा उत्तराखण्ड में चक्काजाम और पुलिस फायरिंग की भी कई घटनाएं हुई…… 
उत्तराखण्ड आन्दोलनकारियों पर मसूरी और खटीमा में हिंसक तौर पर दमन करते हुए पुलिस ने गोलियां भी चलायीं इसी के बाद  संयुक्त मोर्चा के झंडे के नीचे 2 अक्टूबर 1994 को दिल्ली में भारी प्रदर्शन किया गया। इस संघर्ष में भाग लेने के लिये उत्तराखण्ड से हजारों लोगों की भागीदारी हुई। प्रदर्शन में भाग लेने जा रहे आन्दोलनकारियों को मुजफ्फर नगर में बेहद शर्मनाक और हिंसक तरीके से रोकने की सरकारी तंत्र ने कोशिशे की  और उन पर पुलिस ने फ़ायरिंग भी  की और बेहिसाब लाठिया बरसाईं यहाँ तक कहा जाता है कि महिलाओं के साथ अश्लील व्यवहार और अभद्रता भी की गयी। इसमें अनेक लोग घायल हुए।
इस घटना ने उत्तराखण्ड आन्दोलन की आग में घी  का काम किया। अगले दिन 3 अक्टूबर  को इस घटना के विरोध में उत्तराखण्ड बंद का आह्वान किया गया जिसमें तोड़फोड़ गोलाबारी तथा अनेक मौतें हुईं। आंदोलन का ये सिलसिला बहुत लंबा और उग्र हो चला था लेकिन जन आंदोलन के आगे दिल्ली का सिंघासन डोलने लगा था और 15 अगस्त 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा ने लाल किले से उत्तराखण्ड राज्य की घोषणा कर नया इतिहास लिखने का आगाज़ कर दिया था  ……. इसके बाद 1998 में केन्द्र की भाजपा गठबंधन सरकार ने पहली बार राष्ट्रपति के माध्यम से यूपी  विधानसभा को उत्तरांचल विधेयक भेजा।
उ.प्र. सरकार ने 26 संशोधनों के साथ उत्तरांचल राज्य विधेयक विधान सभा में पारित करवाकर केन्द्र सरकार को भेजा। केन्द्र सरकार ने 27 जुलाई 2000  को उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000 को लोकसभा में पेश किया जो 1 अगस्त 2000 को लोकसभा में और 10 अगस्त  2000 को राजयसभा  में भी पारित हो गया। यहाँ से राष्ट्रपति भवन  ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को 28 अगस्त 2000  को अपनी स्वीकृति दे दी और इसके बाद यह विधेयक अधिनियम में बदल गया और इसके साथ ही 9 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आया नया पहाड़ी राज्य उत्तराँचल जो आज उत्तराखंड के नाम से जाना जाता है …. आज 20 साल बाद भी इस खूबसूरत राज्य में कई मुद्दे हैं जिनको लेकर राज्य आंदोलनकारियों का आंदोलन जारी है ….
जय भारत टीवी ने जब देहरादून में कई वरिष्ठ आंदोलनकारियों से उनकी प्रतिक्रिया जानी तो ज्यादातर लोगों ने  बेरोज़गारी , पलायन ,शिक्षा और स्वास्थ्य में खराब रिकॉर्ड की वजह भाजपा और कांग्रेस दोनों को बराबर का दोषी बताया और अफ़सोस जताते हुए ये भी कहा कि जब यही हालात देखने थे तो पहाड़ के लोग यूपी में शामिल रह कर ही अच्छे थे……  कई आंदोलनकारियों ने तो ये भी कहा कि आज नौजवान संघर्ष कर रहे हैं और सरकार के मंत्री और विधायक सत्ता में शामिल होकर मौज काट रहे हैं। लेकिन आज शिकवा शिकायत नहीं बल्कि राज्य के स्थापना की खुशियां मनानी चाहिए  और उन उद्देश्यों को हासिल करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए जिसका संकल्प शहीदों ने लिया था – जय उत्तराखंड 

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