बिहार में अपनी राजनीति चमकाने के लिए पुलिसगिरी छोड़ कर नेतागिरी का मैदान मारने के सपने देखने वाले पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय को सियासत का ऐसा झटका मिला है कि वो खुद को सम्हाल नहीं पा रहे हैं कि उनके साथ ये क्या हो गया है। उन्हें सबसे ज्यादा अपमान इस बात पर भी महसूस हो रहा होगा कि उनकी उड़ान के पंख को एक सिपाही ने काट दिया ,,,,, क्यूंकि जेडीयू के झंडे डंडे को चुनावी बयार में लपकने वाले गुप्तेश्वर पांडेय टिकट लेने की रेस में एक पूर्व सिपाही में गच्चा खा गए। विधायकी के सपने संजोने वाले साहिब ने इसी चक्कर में 22 सितंबर को तड़फड़ में वीआरएस भी ले लिया था और नीतीश बाबू के बगल खड़े हो गए थे
लेकिन आज सच्चाई ये है कि पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय को जेडीयू ने बिहार विधानसभा चुनाव में लड़ने का टिकट ही नहीं दिया और उनकी जगह बक्सर सीट से बीजेपी ने 15 साल पहले सिपाही की नौकरी छोड़ चुके परशुराम चतुर्वेदी को टिकट दिया है…. बिहार विधानसभा चुनाव के लिए जेडीयू ने अपने उम्मीदवारों की लिस्ट पर टकटकी लगाये बैठे थे पांडे जी लेकिन बाजी मार ले गए चौबे जी ….. क्यूंकि इसमें वीआरएस लेकर नीतीश बाबू की पार्टी ज्वाइन करने वाले गुप्तेश्वर बाबू का नाम नहीं था … पार्टी ने उन्हें किसी भी सीट पर टिकट नहीं दिया … कहाँ तो डीजीपी रहे पांडे जी ने अपना टिकट पक्का मान कर वर्दी उतार बैठे थे लेकिन नेताजी का कुर्ता चंद दिनों में ही उन्हें दगा दे गया …. और उनके हाँथ लगा बाबाजी का ठुल्लू …..
उन्हें बक्सर सीट या वाल्मीकि नगर सीट का टिकट तो मिलेगा ही यही सोच कर उनके समर्थकों ने फील्डिंग भी लगा अदि थी लेकिन गठबंधन में शामिल बीजेपी ने बक्सर सीट से उम्मीदवार का नाम घोषित करते हुए 15 साल पहले सिपाही की नौकरी कर चुके परशुराम चतुर्वेदी को टिकट थमा दिया है…… ऐसे में बिहार में सियासी पंडित भी हैरान हैं कि पूर्व डीजीपी पर एक पूर्व सिपाही कैसे भारी पड़ गए….
आपको ये भी बता दें कि परशुराम चतुर्वेदी ने 15 साल पहले अपनी नौकरी छोड़ दी थी और राजनीति में आ गए थे. वो बक्सर मुफस्सिल थाने के महदा गांव के रहने वाले हैं. राजनीति में आने के बाद उन्होंने भाजपा किसान मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में रहकर इलाके में अपनी पहचान बनाई. वे प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य भी रहे…. और अब बीजेपी की नाव में सवार होकर बिहार विधान सभा में इंट्री पाने के लिए मैदान में डटे हैं
टिकट ना मिलने पर पूर्व डीजीपी पांडे जी मीडिया के कमरे पर हताश निराश और खफा भी खूब दिखाई दिए लेकिन बड़े होशियारी भरे अंदाज में बस इतना ही बोल पाए कि राजनीति की कुछ मजबूरियां होती हैं, नीतीश किसी को ठगते नहीं हैं। अब आपको ये भी बता दें कि इसके पहले भी गुप्तेश्वर पांडेय 2009 में भी राजनीति के लिए वर्दी उतार चुके हैं ,,,,
ये अलग बात है कि तब सरकार ने उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया और उन्हें वापस नौकरी करनी पड़ी। 11 साल बाद गुप्तेश्वर पांडेय एक बार फिर राजनीति में अपनी किस्मत आजमाने आए लेकिन इस बार भी बात ना बन सकी। अब देखना है कि पांडे जी को पोलिटिकल पटखनी देने वाले चौबे जी बिहार चुनाव में क्या कमाल कर पाएंगे