उत्तराखंड में क्यों मनाई जाती है 11 दिन बाद दिवाली, जानें क्या है इगास बुग्याल की परंपरा
उत्तराखंड में दीपावली के 11 दिन बाद इगास मनाया जाता है, जो पहाड़ी संस्कृति का प्रतीक माना जाता है. इस दिन घरों को सजाया जाता है, विशेष पकवान बनते हैं, और लोक नृत्य व संगीत का आयोजन होता है. इस समय पूरे क्षेत्र में उत्सव का माहौल रहता है और लोग आपस में खुशियां बांटते हैं.
दीपावली के बाद आने वाली एकादशी को इगास बग्वाल को मनाया जाता है. जिसमें लकड़ियों का गट्ठर बनाकर उन्हें जलाकर भेलों खेला जाता है. इस दौरान लोग पारंपरिक वेशभूषा में नजर आते हैं और पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं. इस दिन सुबह से ढोल और दमाऊं (एक पारंपरिक वाद्य) की आवाज गूंजने लगती है, जिसे देवता को जगाने का माध्यम बताया जाता है. वहीं घरों में पकवान बनाए जाते हैं और भोग देवताओं को लगता है. फिर महिला-पुरुष अपनी पहाड़ी पारंपरिक वेश-भूषा में तैयार होते हैं. घरों में, चौक-चबारों में और हर कोने-कोने में दीपक जलाए जाते हैं. देवताओं के स्थानों को भी दीप मालिकाओं से प्रकाशित किया जाता है.
