द नेलांग फाइल्सः 60 साल बाद अपने गांव लौटेंगे चीन-भारत युद्ध के विस्थापित
देहरादून- 1962 के भारत-चीन यु़द्ध के दौरान सीमा से विस्थापित किये गये लोग 60 साल बाद अपने पुश्तैनी गांव लौटने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर उत्तराखण्ड सरकार ने गांव के लोगों को वापस अपने मूल गांव भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
द कश्मीर फाइल्स की तरह रक्त रंजित तो नहीं लेकिन नेलांग फाइल्स की कहानी भी पलायन की उसी पीड़ा से भरी है जो कश्मीरी पंडितों के साथ हुआ है। 1962 भारत-चीन युद्ध के दौरान उत्तराखण्ड के चीन से सटे दो गांव नेलांग और जादूंग से गांव के सभी लोगों को विस्थापित किया गया था। उस वक्त गांव के लोग अपना घर-बार छोड़ वहां से निकल आये थे। तब इन गांवों के ग्रामीण अपने रिश्तेदारों के यहां बगोरी और डुंडा में शरण ली। इन दोनों गांवों के लोगों को मुख्य व्यवसाय कृषि और भेड़पालन था। ग्रामीणों को उम्मीद थी कि युद्ध समाप्ति के बाद सरकार उन्हें वापस अपनी जमीन पर लौटने की इजाजद देगी। लेकिन 60 साल बीतने के बाद भी नेलांग और जादूंग गांव के लोगों की वापसी नहीं हो सकी। इस लम्बी अवधि के दौरान एक पीढ़ी गुजर गई। युद्ध के वक्त नेलांग गांव में 40 और जादूंग गांव में 30 परिवार रहा करते थे।
इधर बीते जनवरी में जादूंग के पूर्व निवासी और प्रधान भवान सिंह राणा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खत लिख अपनी पीड़ा बताई। जिस पर पीएम मोदी ने त्वरित कार्यवाई करते हुये उत्तराखण्ड सरकार को आदेश दिया। जिस पर उत्तराखण्ड सरकार ने इन दोनों गांवों के पूर्व निवासियों को वापस गांव में बसाने की मुहीम शुरू कर दी है। इसके लिये नेलांग और जादूंग गांव की पैमाइश और सर्वे आदि का काम शुरू कर दिया गया है। ग्रामीणों में वापस अपने पुश्तैनी गांव लौटने की बहुत खुशी है। लेकिन गांव के लोगों ने सरकार के सामने अपनी कुछ मांगे भी रखी है। मसलन पलायन की इस अवधि के बीच का कृषि मुआवजा, सुरक्षा बलों द्वारा प्रयोग में लाई जा चुकी जमीन की भरपाई समेत गांव को मॉडल गांव बनाने के लिये योजनाओं का सीधा लाभ देने जैसी मांगे शामिल हैं। सरकार ने ग्रामीणों को हर संभव मदद देने का आश्वासन दिया है।