अमेरिका डॉलर और रूपये का अब तक सफर कुछ ऐसा रहा, देखकर आपको निराशा जरूर होगी
अमेरिका दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बहुत हद तक इसलिये माना जाता है क्योंकि अमेरिकी करेंसी डॉलर की दुनियाभर में तूती बोलती है। डॉलर को दुनिया का सबसे ताकतवर करेंसी भी माना जाता है। हर देश दूसरे देशों के साथ व्यापार डॉलर में ही करते हैं। यानी डॉलर को ही बेंचमार्क करेंसी माना जाता है। और यही डॉलर दुनिया की दूसरी करेंसी की वैल्यू भी तय करता है।
आज आपको अमेरिकी डॉलर और भारतीय रूपये के तुलनात्मक सफर से रूबरू कराते हैं, कि कैसे आजादी के बाद से लेकर अब तक डॉलर के मुकाबले रूपये कमजोर से बेहद कमजोर होता चला गया।
1947 में एक डॉलर की वैल्यू रुपये के मुकाबले 4.16 रुपये हुआ करती थी।
1950 से लेकर 1966 तक एक डॉलर की वैल्यू 4.76 रुपये बने रही।
इसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट, विदेशों से लिए गए कर्ज, 1962 में भारत-चीन युद्ध, 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध और 1966 में आए भीषण सूखे के कारण 1967 में एक डॉलर की वैल्यू 7.50 रुपये के बराबर हो गयी
कच्चे तेल की सप्लाई के संकट के चलते 1974 में एक डॉलर की वैल्यू घटकर 8.10 रुपये पर आ गयी। इसके बाद देश में राजनीतिक संकट, भारी भरकम विदेशी कर्ज लेने के चलते करेंसी में बड़ी गिरावट देखने को मिली, जिसके बाद अगले एक दशक में लगातार डॉलर के मुकाबले रुपया गिरता चला गया। और 1990 में 17.50 रुपये के लेवल पर आ गया।
यहां तक फिर भी ठीक था। लेकिन 1990 में भारतीय अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल छा गये। भारत पर विदेशी कर्ज का बड़ा बोझ था। सरकार को जितना रेवेन्यू आ रहा था उसका 39 फीसदी कर्ज के ब्याज के मद में भुगतान करना पड़ रहा था।
1992 में एक डॉलर के मुकाबले रुपये की वैल्यू गिरकर 25.92 रुपये पर जा पहुंची। 2004 में यूपीए जब सत्ता में आई तब एक डॉलर की वैल्यू 45.32 रुपये हुआ करती थी। 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई उसके एक साल बाद एक डॉलर की वैल्यू 45 से सीधे 63 रुपये पर पहुंच। असल में डॉलर के मुकाबले रूपये का रसातल में साने का सिलसिला यहीं से शुरू हुआ। 2021 में एक डॉलर की वैल्यू 74.57 रुपये पहुंच गई।
2022 में एक समय डॉलर के मुकाबले रुपये में 10 फीसदी की गिरावट आ गई थी। एक डॉलर के मुकाबले रुपये की वैल्यू घटकर 83 के लेवल तक जा गिरी।
आज की तारीख में हालात इतने बदतर हैं कि एक डॉलर के मुकाबले रूपये की कीमत 85.77 पर पहुंच चुकी है।