केंद्र सरकार ने देश में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ कराने के लिए कवायद तेज कर दी है। सरकार ने इस मुद्दे का अध्ययन करने के लिए मामला विधि आयोग को सौंपा है ताकि व्यावहारिक रोडमैप और रूपरेखा तय की जा सके। लोकसभा के अगले चुनाव दो वर्ष बाद यानी 2024 में होंगे जिसके साथ छह राज्यों के विधानसभा चुनाव भी होने हैं। इससे पहले साल 2018 में विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ऐसा माहौल है कि देश में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ कराने की जरूरत है। आयोग ने उस समय सुझाव दिए थे कि संविधान के अनुच्छेद 83 यानी संसद के कार्यकाल, अनुच्छेद 172 यानी विधानसभा के कार्यकाल और जनप्रतिनिधत्व कानून, 1951 में संशोधन करने के बाद चुनाव एक साथ करवाए जा सकते हैं। इससे देश को लगातार चुनाव मोड में रहने से निजात मिल जाएगी। केंद्र सरकार ने वर्ष 2014 से 2020 तक 5794 करोड़ रुपये जारी किए हैं। छह वर्ष की इस अवधि में 50 विधानसभा चुनाव और दो बार लोकसभा के चुनाव हुए हैं। नियमानुसार, लोकसभा चुनावों में पूरा खर्च केंद्र सरकार उठाती है जबकि विधानसभा चुनावों का खर्च संबंधित राज्य उठाता है। सरकार का कहना है कि यदि चुनाव एक साथ हों तो यह खर्च आधा हो जाएगा और केंद्र तथा राज्य सरकारों को आधा-आधा खर्च ही वहन करना पड़ेगा। सुरक्षा बलों को अलग-अलग राज्यों में चुनाव के लिये नहीं जाना पड़ेगा और आदर्श आचार संहिता के चलते विकास कार्यों में आने वाली अड़चन से भी छुटकारा मिल जाएगा। जहां तक निर्वाचन आयोग का सवाल है तो वह पहले ही कह चुका है कि उसे एक साथ चुनाव कराने में कोई दिक्कत नहीं है। इसके लिए उसे बस वोटिंग मशीनों की संख्या बढ़ानी होगी जिसे वह एक तय समय में कर सकता है। बता दें कि देश में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव 1951 से लेकर 1967 तक एक साथ हुए। इधर मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से लिंक करने सहित चुनाव से जुड़े सुधारों को तेजी से आगे बढ़ाने में जुटे निर्वाचन आयोग ने एक देश-एक मतदाता सूची को लेकर भी सक्रियता दिखाई है। राज्यों के साथ इस मुद्दे पर सहमति बनाने की कोशिश शुरू हुई है। सोमवार से आधार के साथ वोटर कार्ड को लिंक करने का अभियान शुरू हो चुका है। इसके बाद एक मतदाता सूची पर कदम आगे बढ़ाया जाएगा।