रैणी की आपदा को एक साल, अब भी हरे हैं जलप्रलय के जख्म
देहरादून – पिछले वर्ष उत्तराखंड के ऋषि गंगा में एक हादसे ने कई लोगों को झकझोर कर रख दिया था। 7 फरवरी 2021 की सुबह लगभग सवा दस बजे रोंठी ग्लेशियर के एक बड़े भाग के टूट जाने के से पूरी रैणी और तपोवन घाटी में कई जिंदगियां मलबे में दफन हो गईं थीं। स्थिति यह है कि आज भी तपोवन और रैणी के ग्रामीण धौली और ऋषि गंगा के किनारे जाने से डर रहे हैं। इस हादसे में एनटीपीसी में कार्यरत 140 संविदा कर्मी लापता हो गए थे जिनमें से 135 के शव मिल चुके हैं। अभी भी कुछ शव लापता हैं। आपदा को आज एक वर्ष पूरा हो चुका है लेकिन आज भी यहां टूटे तटबंधों पर बाढ़ सुरक्षा कार्य शुरू नहीं हो पाया है। साथ ही मलारी हाईवे का सुधारीकरण कार्य अभी तक शुरू नहीं किया गया है। आज भी रैणी गांव में मलारी हाईवे पर बैली ब्रिज से ही वाहनों की आवाजाही होती है। यहां स्थायी मोटर पुल का निर्माण कार्य और पैदल रास्ता भी तैयार नहीं है। ग्रामीण को प्रयाग पर शवदाह करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है उनका रास्ता भी नहीं बचा है। पैदल रास्ते भी क्षतिग्रस्त पड़े हैं। बता दें कि सभी मृतकों के आश्रितों को सात लाख रुपये मुआवजा दिया गया था। लेकिन स्थानीय लोगों का जीवन आज भी परेशानी में है।