चैत्र नवरात्री : दुर्गाष्टमी पर जानिए कन्या पूजन का महत्व
आज चैत्र शुक्ल नवरात्रि के आठवें दिन माँ दुर्गा के आठवें स्वरुप माँ गौरा की पूजा की जाती है। इस तिथि में माँ गौरा की पूजा अर्चना की जाती है। माँ गौरा का रंग गोरा होने के कारण उन्हें महागौरा भी कहा जाता है। मान्यता है कि मां महागौरी की पूजा करने से साधक को सुख-सौभाग्य व धन-धान्य की प्राप्ति होती है। इस दिन भक्त मंदिर-घरों में हवन और कन्या पूजन भी करते हैं। घरों में माता के नौ स्वरुप के रूप में नौ कन्याओं की पूजा कर उन्हें भोग लगाया जाता है। मान्यता है कि माता सीता ने प्रभु श्री राम को वर के रूप में पाने के लिए देवी महागौरी की ही पूजा की थी।
आज के पूजन के लिए पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। इसके बाद घर के मंदिर में माता को सफेद रंग चढ़ा कर पूजा अर्चना करें। पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि 08 अप्रैल की रात 11 बजकर 05 मिनट से शुरू हो रही है। साथ ही इसका समापन 09 अप्रैल की देर रात 1 बजकर 23 मिनट पर होगा।
कन्या पूजन में 9 कन्याओं को पूजा जाता है, इन सभी कन्याओं को देवी के 9 रूप मानकर इनके पैर धुलाये जाते हैं फिर आदर सत्कार के साथ इन्हें भोजन खिलाया जाता है। वैसे तो सप्तमी से ही कन्या पूजन का महत्व है। लेकिन सप्तमी, अष्टमी, नवमी और दशमी को भी कन्या पूजन के साथ व्रत ख़त्म किया जा सकता है। कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं लेकिन अष्टमी के दिन कन्या पूजन श्रेष्ठ रहता है। कन्याओं की आयु 10 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। शास्त्रों में 2 साल की कन्या कुमारी, 3 साल की त्रिमूर्ति, 4 साल की कल्याणी, 5 साल की रोहिणी, 6 साल की कालिका, 7 साल की चंडिका, 8 साल की शांभवी, 9 साल की दुर्गा और 10 साल की कन्या सुभद्रा मानी जाती हैं। भोजन कराने के बाद कन्याओं को दक्षिणा देनी चाहिए। ।