ऑपरेशन मेघदूत को सफल बनाने में भारतीय सेना के कई जवानों ने शहादत दी थी, आज ऑपरेशन मेघदूत में अपनी शहादत देने वाले उत्तराखण्ड के एक वीर जवान लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला लौटकर घर आ रहे हैं। जी हां तिरंगे में लिपटकर। आज से 38 साल पहले उन्होंने अपनी पत्नी शांति देवी से लौटकर आने वादा किया था, उन्होंने अपना वादा निभाया है और भलेही जीवित नहीं मगर तिरंगे में लिपटकर जरूर आये हैं।
कहते हैं भारतीय सेना के वीर जवानों की दास्तान सुनेंगे तो सब कुछ अद्भुत, अदम्य, अकल्पनीय और चमत्कार ही नजर आऐंगे। ऐसा ही एक अकल्पनीय चमत्कार लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला के परिवार के साथ हुआ है। सियाचिन ग्लेशियर में हिमस्खलन में दबकर शहीद हुए लांसनायक चंद्रशेखर हर्बाेला का पार्थिव शरीर 38 साल बाद मिला है। 1984 में ऑपरेशन मेघदूत के दौरान कुमाऊं रेजिमेंट के 19 जवान हिमस्खलन में दब गए थे। मूल रूप से उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के रानीखेत तहसील के बिन्ता हाथीखुर गांव निवासी लांसनायक चंद्रशेखर हर्बाेला 1971 में कुमाऊं रेजिमेंट में भर्ती हुए थे। मई 1984 को बटालियन लीडर लेफ्टिनेंट पीएस पुंडीर के नेतृत्व में 19 जवानों का दल ऑपरेशन मेघदूत के लिए निकला था। 29 मई को भारी हिमस्खलन से पूरी बटालियन दब गई थी, जिसके बाद उन्हें शहीद घोषित कर दिया गया था। उस समय लांसनायक चंद्रशेखर की उम्र 28 साल थी। शनिवार रात शहीद की पत्नी शांति देवी को फोन से जानकारी मिली कि शहीद लांसनायक चंद्रशेखर का पार्थिव शरीर ग्लेशियर से बरामद हुआ है। शहीद का परिवार वर्तमान में हल्द्वानी में रहता है। शहीद चंद्रशेखर हरबोला आज जीवित होते तो 66 वर्ष के होते। उनके परिवार में उनकी 64 वर्षीय पत्नी शांता देवी, दो बेटियां कविता, बबीता और उनके बच्चे यानी नाती-पोते 28 वर्षीय युवा के रूप में अंतिम दर्शन करेंगे। पत्नी शांता देवी उनके शहीद होने से पहले से नौकरी में थी, जबकि उस समय बेटियां काफी छोटी थीं। उम्मीद है कि उनका पार्थिव शरीर 15 अगस्त की शाम तक तिरंगे में लिपटकर नई दिल्ली से होते हुए हल्द्वानी पहुंच जाएगा। जहां पूरे राजकीय सम्मान के साथ शहीद चंद्रशेखर हर्बोला का अंतिम संस्कार किया जाएगा।