धूमधाम से मनाई गई मंगसीर बग्वाल, तीन दिन तक चला उत्सव
लोक विजय पर्व मंगसीर बग्वाल का त्योहार इस बार तीन दिन तक आयोजित किया गया। 29 नवंबर से शुरू हुये कार्यक्रम 1 दिसंबर तक जारी रहे। उत्तरकाशी के रामलीला मैदान में मंगसीर बग्वाल का आयोजन हुआ। जिसके तहत मांगल गायन, लोक नृत्य, भैलू पूजन, भैलू नृत्य, शोभा यात्रा, पारंपरिक खेल पिट्ठू ग्राम, मुर्गा झपट, व्रत तोड़ जैसी प्रतियोगिताएं भी आयोजित की गईं।
चलिये अब आपको बताते हैं कि मंगसरी बग्वाल आखिर क्यों मनाई जाती है।
कार्तिक मास की दीपावली से एक माह बाद मनाया जाने वाली मंगसीर बग्वाल तिब्बत विजय का प्रतीक है। और मंगसीर की बग्वाल गढ़वाली सेना की तिब्बत विजय का उत्सव है। इस त्योहार पर घर में दाल के पकोड़े, आलू और गहथ की भरी पूरियां बनाई गई। साथ ही ग्रामीण गांव की थाती पर एकत्र होकर एक साथ लकड़ी के छिलकों से बनाया हुए मशाल यानी भैलो को जलाकर देर रात तक ढोल-दमाऊ की थाप पर नृत्य कर एक-दूसरे के घर में पकवानों से भरी थालियां भेंट की जाती हैं।
बताया जाता है कि 1627-28 के बीच गढ़वाल नरेश महिपत शाह के शासनकाल के दौरान तिब्बती लुटेरे गढ़वाल की सीमाओं के अंदर घुसकर लूटपाट करते थे। इस पर राजा ने माधो सिंह भंडारी और लोदी रिखोला के नेतृत्व में सेना भेजी। गढ़वाली सेना ने तिब्बत में घुसकर लुटेरों पर जीत दर्ज की। इस लड़ाई के चलते कार्तिक मास की दीपावली में माधो सिंह भंडारी घर नहीं पहुंच पाए। इसलिए उन्होंने घर में संदेश पहुंचाया था कि जब वो जीतकर लौटेंगे, तब दीपावली मनाई जाएगी। युद्ध के मध्य में ही एक माह पश्चात माधो सिंह अपने गांव मलेथा पहुंचे। और तभी से गढ़वाल में हर साल धूम धाम के साथ मंगसीर बग्वाल मनाई जाती है।