इगास बग्वाल आज, त्रेता का इतिहास उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर
उत्तराखंड में आज इगास बग्वाल मनाई जा रही है। दीपावली के 11वें दिन मनाई जाने वाली इगास बग्वाल का अपना खास महत्व और सांस्कृतिक इतिहास रहा है। इसे ‘बूढ़ी दीपावली’ भी कहते हैं, और इस बार ये त्योहार 12 नवंबर को मनाया जा रहा है। इस पर्व का उद्देश्य न केवल पुरानी परंपराओं का सम्मान करना है, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को जिंदा रखना भी है।
चलिये अब आपको बताते हैं कि इगास बग्वाल का सांस्कृतिक इतिहास क्या है-
दीपावली के 11 दिन बाद इस पर्व को मनाने के पीछे प्राचीन मान्यता है कि गढ़वाल में भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने का समाचार देरी से पहुंचा था, यानी लगभग 11 दिन बाद। जब गढ़वालवासियों को 11 दिन बाद पता चला कि भगवान लंका से अयोध्या लौट आये हैं तो इस खुशी में उन्होंने घरों में दिये जालाये और दीपावली मनाई।
इसके अलावा भी एक और ऐतिहासिक घटना घटी थी, जब वीर योद्धा माधो सिंह भंडारी तिब्बत युद्ध में विजय होकर गढ़वाली सैनिकों के साथ गांव लौटे थे। तब दीप जलाकर लोगों ने जीत की खुशी बनाई थी।
इगास बग्वाल में भैलो खेल मुख्य आकर्षण है। इस खेल में चीड़ की लकड़ी से बने मशाल जालाये जाते हैं लोग उन्हें घुमाते हुए लोक गीतों और नृत्य का आनंद लेते हैं।
खास बात ये है कि इगास में पटाखों का उपयोग न के बराबर होता है।