Monday, December 9, 2024
उत्तराखंड

सरकार की लचर पैरवी और लेटलतीफी से 730 नौकरियों पर खतरा, क्षैतिज आरक्षण पर अब क्या करेगी सरकार?

देहरादून- उत्तराखण्ड सरकार की लचर पैरवी और लेटलतीफी के चलते राज्य आंदोलनकारियों की 730 सरकारी नौकरियों पर संकट आ गया है। नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी सेवाओं में 10 फीसदी के क्षैतिज आरक्षण दिये जाने के संबंध में राज्य सरकार की ओर दायर मोडिफिकेशन एप्लिकेशन को खाजिर कर दिया है। खंडपीठ ने सरकार के प्रार्थना पत्र को यह कहकर निरस्त कर दिया कि आदेश को हुए 1403 दिन हो गए और सरकार अब मोडिफिकेशन एप्लिकेशन पेश कर पाई। अब इसका कोई आधार नहीं रह गया है, सरकार की ओर से देर से दाखिल करने का कोई ठोस कारण भी नहीं दिया गया। यह प्रार्थना पत्र लिमिटेशन एक्ट की परिधि से बाहर जाकर पेश किया गया जबकि आदेश होने के 30 दिन के भीतर पेश किया जाना था। कोर्ट के इस रूख के बाद राज्य आंदोलनकारियों को कोटे से मिली 730 नौकरियों पर संकट आ गया है इससे राज्य आंदोलनकारी खासे नाराज हैं।
आपको बता दें कि 2004 में राज्य आंदोलनकारियों को दस फीसदी का आरक्षण दिये जाने को लेकर एनडी तिवारी सरकार दो शासनादेश लाई थी। पहला शासनादेश लोक सेवा आयोग से भरे जाने वाले पदों के लिए, जबकि दूसरा लोक सेवा आयोग की परिधि के बाहर के पदों के लिए था। जीओ जारी होने के बाद राज्य आंदोलनकारियों को दस फीसदी क्षैतिज आरक्षण दिया गया। 2011 में उच्च न्यायालय ने इस जीओ पर रोक लगा दी। बाद में हाईकोर्ट ने इस मामले को जनहित याचिका में तब्दील करके 2015 में इस पर सुनवाई की। कोर्ट ने आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया। 2015 में कांग्रेस सरकार ने विधानसभा में विधेयक पास कर राज्य आंदोलनकारियों को 10 फीसद आरक्षण देने का विधेयक पास किया और इस विधेयक को राज्यपाल के हस्ताक्षरों के लिये भेजा लेकिन आज तक राजभवन से यह विधेयक वापस नहीं आया। सरकार ने बुधवार को राज्य लोक सेवा आयोग की परिधि से बाहर वाले शासनादेश में शामिल प्रावधान के संशोधन को प्रार्थना पेश किया था, जिसको कोर्ट ने निरस्त कर दिया। अभी तक आयोग की परिधि से बाहर 730 लोगो को नौकरी दी गयी है, जो अब खतरे में है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *