सोने, हीरे की माइनिंग के बाद, अब क्रिप्टो माइनिंग का है दौर, भारत में भी होने लगी माइनिंग
क्रिप्टोकरंसी.…. वो नाम जिसे सुनते ही आंखें चमक उठती हैं, चमक उस दौलत की जो शुरू ही एक करोड़ से होती है और पहुंचती अरबों, खरबों तक है। क्योंकि एक बिटकॉइन की कीमत ही 85 लाख के आस-पास है।
और जब क्रिप्टोकरंसी की बात आती है तो एक टर्म सबसे ज्यादा सुनाई देता है और वो है क्रिप्टोकरंसी माइनिंग।
और माइनिंग का नाम सुनते ही सबसे पहले सोने, हीरे या कोयले की खुदाई का ख्याल मन में आता है। जी हां…. क्रिप्टोकरंसी माइनिंग भी कुछ ऐसी है, यू समझ लीजिए यहां क्रिप्टो माइनिंग या बिटकॉइन माइनिंग में आपको कुछ पजल्स को सॉल्व करके नये बिटकॉइन बनाना है।
चलिए थोड़ा आसान भाषा में समझते हैं। जिस तरह हम किसी को पैसे भेजने को लिए कोई ट्रांजेक्शन करते हैं तो वो पहले बैंक के पास जाती है और फिर बैंक उसे वैलिडेट कर के आगे भेजता है। क्रिप्टोकरंसी के मामले में कॉइन भेजने वाले और उसे रिसीव करने वाले के बीच में बैंक जैसा कुछ नहीं होता है, बल्कि सिर्फ कंप्यूटर्स होते हैं। इन कंप्यूटर्स को कुछ लोग चलाते हैं, जिसके जरिए हर ट्रांजेक्शन वैलिडेट होती है। उनकी इस मेहनत के बदले उन्हें बिटकॉइन मिलते हैं। इसे ही बिटकॉइन माइनिंग कहते हैं। दूसरी क्रिप्टोकरंसी में भी इसी तरह माइनिंग होती है।
चलिये अब आपको बताते हैं आखिर क्रिप्टो माइनिंग कौन कर सकता है?
क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग के लिए ऐसे कम्प्यूटर चाहिए, जिनमें जटिल क्रिप्टोग्राफिक मैथमेटिक इक्वेशंस को सॉल्व करने के लिए स्पेशल सॉफ्टवेयर हों। बिटकॉइन के शुरुआती दिनों में इसे होम कम्प्यूटर से एक सिंपल सीपीयू चिप से माइन किया जा सकता था, लेकिन अब ऐसा नहीं रह गया है। आज इसके लिए स्पेशलाइज्ड सॉफ्टवेयर की जरूरत होती है। इसे चौबीसों घंटे भरोसेमंद इंटरनेट कनेक्शन और बड़ी मात्रा में बिजली की जरूरत होती है। और हर क्रिप्टो माइनर के लिए ऑनलाइन माइनिंग पूल का मेंबर होना भी जरूरी है।
अब सवाल है कि क्या भारत में क्रिप्टो माइनिंग हो सकती है?
जवाब अभी अधूरा है,
भारत सरकार फिलहाल बिटकॉइन को लेकर नई पॉलिसी पर काम कर रही है। क्योंकि भारत में नोट छापने की इजाजत नहीं है तो डिजिटल करेंसी को सरकार कैसे परिभाषित करेगी ये देखना बाकी है। और क्रिप्टो माइनिंग की अनुमति इसलिये भी नहीं दी जा रही क्योंकि बिटकॉइन की बड़े स्तर पर माइनिंग के लिए बिजली की बहुत खपत होती है। एक अनुमान के मुताबिक एक साल में बिटकॉइन की माइनिंग पर 60 टेरावॉट-हॉर्स बिजली की खपत होती है। भारत में अलग-अलग राज्य में बिटकॉइन मायनिंग का अलग-अलग खर्चा आ सकता है। यानी बिजली के दामों और उसकी उपलब्धता पर निर्भर करेगा कि बिटकॉइन को माइन करने में खर्च कितना आ रहा है। यानी एक बिटकॉइन बनाने की लागत उसकी मौजूदा कीमत से ज्यादा हो सकती है। बिटकॉइन की कीमतें अगर आज आसमान छू रही हैं तो इसका सबसे बड़ा कारण बिजली पर लगने वाला खर्च ही है।
इतना ही नहीं बिटकॉइन माइनिंग के लिए एएस आईसी मशीनों का इस्तेमाल होता है. इन मशीनों को बहुत ज्यादा बिजली चाहिए होती है. भारत में बिजली की कमी है, देश में अभी भी लोगों के लिए पर्याप्त बिजली उपलब्ध नहीं है. इसे देखते हुए बिटकॉइन या दूसरी क्रिप्टोकरंसी की माइनिंग पर रोक है.
बावजूद इसके भारत में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं जब लोग अवैध रूप से बिटकॉइन की मानिंग करते पकड़े गये हैं, कई लोगों पर अभी भी मामले चल रहे हैं। जिन्होंने एक तरह से चोरी की बिजली का इस्तेमाल कर क्रिप्टो माइनिंग की कोशिश की है।